श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
पंचम अध्याययत् परं ज्ञानं प्रकाशितम्- जो प्रकाशित हुआ परमज्ञान है- तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणा: । तस्मिन् गता बुद्धिः येषां ते तद्बुद्धयः तदात्मानः तद् एव परं ब्रह्म आत्मा येषां ते तदात्मानः तन्निष्ठा निष्ठा अभिनिवेशः तात्पर्यं सर्वाणि कर्माणि सन्न्यस्य ब्रह्मणि एव अवस्थानं येषां ते तन्निष्ठाः। उस परमार्थतत्व में जिनकी बुद्धि जा पहुँची है वे ‘तद्बुद्धि’ हैं, वह परब्रह्म ही जिनका आत्मा है वे ‘तदात्मा’ हैं, उस ब्रह्म में ही जिनकी निष्ठा- दृढ़ आत्मभावना- तत्परता है अर्थात् जो सब कर्मों का संन्यास करके ब्रह्म में ही स्थित हो गये हैं वे ‘तन्निष्ठ’ हैं। तत्परायणाः च तद् एव परम् अयन परा गतिः येषां भवति ते तत्परायणाः केवलात्मरतय इत्यर्थः। येषां ज्ञानेन नाशितम् आत्मनः अज्ञानं ते गच्छन्ति एवंविधा अपुनरावृत्तिम् अपुन र्देहसंबंध ज्ञाननिर्धूतकल्मषा यथोक्तेन ज्ञानेन निर्धूता नाशिताः कल्मषः पापादिसंसारकारण दोषा येषां ते ज्ञाननिर्धूतकल्मषा यतय इत्यर्थः।।17।। वह परब्रह्म ही जिनका परम अयन आश्रय परमगति है अर्थात जो केवल आत्मा में ही रत हैं वे ‘तत्परायण’ हैं, (इस प्रकार) जिनके अंतःकरण का अज्ञान ज्ञान द्वारा नष्ट हो गया है एवं उपर्युक्त ज्ञान द्वारा संसार के कारण रूप पापादि दोष जिनके नष्ट हो चुके हैं, ऐसे ज्ञाननिर्धूतकल्मष संन्यासी अपुनरावृत्ति को अर्थात्, जिस अवस्था को प्राप्त कर लेने पर फिर देह से संबंध होना छूट जाता है, ऐसी अवस्था को प्राप्त होते हैं।।17।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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