श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य पृ. 168

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य

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चतुर्थो अध्याय

वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिता: ।
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागता: ॥10॥

वीतरागभयक्रोधा रागः च भयं च क्रोधः च वीता विगता येभ्यः ते वीतरागभयक्रोधाः, मन्मया ब्रह्मविद ईश्वराबेददर्शिनः, माम एव परमेश्वरम् उपाश्रिताः केवलज्ञाननिष्ठा इत्यर्थः। बहवः अनेके ज्ञानतपसा ज्ञानम् एव च परमात्मविषयं तपः तेन ज्ञानतपसा पूताः परां शुद्धिं गताः सन्तो मद्भावम्। ईश्वरभावं मोक्षम् आगताः समनुप्राप्ताः।

इतरतपोनिरपेक्षज्ञाननिष्ठा इति अस्य लिंग ज्ञानतपसा इति विशेषणम्।।10।।

तव तर्हि रागद्वेषौ स्तः येन केभ्यश्चिद् एव आत्मभावं प्रयच्छसि न सर्वेभ्य इति उच्यते-

जिनके राग, भय और क्रोध- चले गये हैं ऐसे रागादि दोषों से रहित, ईश्वर में तन्मय हुए- ईश्वर से अपना अभेद समझने वाले- ब्रह्मवेत्ता और मुझ परमेश्वर के ही आश्रित- केवल ज्ञान निष्ठा में स्थित ऐसे बहुत से महापुरुष परमात्मविषयक ज्ञानरूप तप से परमशुद्धि को प्राप्त होकर मुझ ईश्वर के भाव को मोक्ष को प्राप्त हो गये हैं।

‘ज्ञानतपसा’ यह विशेषण इस बात का द्योतक है कि ज्ञाननिष्ठा अन्य तपों की अपेक्षा नहीं रखती।।10।।

तब क्या आपमें रागद्वेष हैं, जिससे कि आप किसी-किसी को ही आत्मभाव प्रदान करते हैं, सबको नहीं करते! इस पर कहते हैं-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. प्रथम अध्याय 16
2. द्वितीय अध्याय 26
3. तृतीय अध्याय 114
4. चतुर्थ अध्याय 162
5. पंचम अध्याय 216
6. षष्ठम अध्याय 254
7. सप्तम अध्याय 297
8. अष्टम अध्याय 318
9. नवम अध्याय 339
10. दशम अध्याय 364
11. एकादश अध्याय 387
12. द्वादश अध्याय 420
13. त्रयोदश अध्याय 437
14. चतुर्दश अध्याय 516
15. पंचदश अध्याय 536
16. षोडश अध्याय 557
17. सप्तदश अध्याय 574
18. अष्टादश अध्याय 591
अंतिम पृष्ठ 699

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