राधा माधव रस सुधा पृ. 32

श्री राधा माधव रस सुधा -हनुमान प्रसाद पोद्दार

[षोडशगीत]

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श्रीकृष्ण के प्रेमोद्गार-श्रीराधा के प्रति

(राग वागेश्र-तीन ताल)

भूल उच्चता, भगवत्ता सब, सत्ता का सारा अधिकार ।
मुझ नगण्य से मिले तुच्छ बन, स्वयं छोड़ संकोच-संभार ॥ 8॥

मानो अति आतुर मिलने को, मानो हो अत्यन्त अधीर ।
तत्व रूपता भूल सभी, नेत्रों से लगे बहाने नीर ॥ 9॥

हो व्याकुल, भर रस अगाध, आकर शुचि रस-रसिता के तीर ।
करने लगे परम अवगाहन, तोड़ सभी मर्यादा धीर ॥ 10॥

बढ़ी अमित, उमड़ी रस-सरिता पावन, छायी चारों ओर ।
डूबे सभी भेद उसमें, फिर रहा कहीं भी ओर न छोर ॥ 11॥

प्रेम, प्रेम, परम प्रेमास्पद— नहीं ज्ञान कुछ, हुए विभोर ।
राधा प्यारी हूँ मैं, या हो केवल तुम प्रिय नन्दकिशोर ॥ 12॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

राधा माधव रस सुधा
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. महाभाव-रसराज-वन्दना 2
2. राग मालकोस-तीन ताल 4
3. राग रागेश्वर-ताल दादरा 6
4. राग भैरव-तीन ताल 8
5. राग भैरवी-तीन ताल 10
6. राग परज-तीन ताल 12
7. राग परज-तीन ताल 14
8. राग भैरवी तर्ज-तीन ताल 16
9. राग भैरवी तर्ज-तीन ताल 18
10. राग गूजर-ताल कहरवा 20
11. राग गूजर-ताल कहरवा 22
12. राग शिवरंजन-तीन ताल 24
13. राग शिवरंजन-तीन ताल 26
14. राग वागेश्र-तीन ताल 28
15. राग वागेश्र-तीन ताल 30
16. राग भैरव-तीन ताल 34
17. राग भैरवी तर्ज-तीन ताल 36
18. पुष्पिका 38
अंतिम पृष्ठ 39

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