श्रीकृष्ण के प्रेमोद्गार-श्रीराधा के प्रति(राग वागेश्र-तीन ताल)भूल उच्चता, भगवत्ता सब, सत्ता का सारा अधिकार । मानो अति आतुर मिलने को, मानो हो अत्यन्त अधीर । हो व्याकुल, भर रस अगाध, आकर शुचि रस-रसिता के तीर । बढ़ी अमित, उमड़ी रस-सरिता पावन, छायी चारों ओर । प्रेम, प्रेम, परम प्रेमास्पद— नहीं ज्ञान कुछ, हुए विभोर । इस गीत का अनुवाद अगले पृष्ठ पर देखें |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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