श्रीकृष्ण के प्रेमोद्गार-श्रीराधा के प्रति(राग गूजर-ताल कहरवा)राधे! हे प्रियतमे! प्राण-प्रतिमे! हे मेरी जीवन-मूल! श्वास-श्वास में तेरी स्मृतिका नित्य पवित्र स्त्रोत बहता । नेत्र देखते तुझे नित्य ही, सुनते शब्द मधुर यह कान । अंग-अंग शुचि पाते नित ही तेरा प्यारा अंग-स्पर्श । इस गीत का अनुवाद अगले पृष्ठ पर देखें |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
सम्बंधित लेख
क्रम संख्या | अध्याय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज