राधा माधव रस सुधा पृ. 19

श्री राधा माधव रस सुधा -हनुमान प्रसाद पोद्दार

[षोडशगीत]

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श्रीकृष्ण के प्रेमोद्गार-श्रीराधा के प्रति

(राग भैरवी तर्ज-तीन ताल)

मेरे जीवनधन! मैं सदा सोचती रहती हूँ कि तुमको क्या दूँ। जो धन मैं तुमको देना चाहती हूँ, मेरा वह धन तो तुम ही हो ॥ 1॥

तुम्हीं मुझको प्राणों से प्यारे हो और हे प्रियतम! मैं सदा तुम्हारी हूँ। तुम्हारी ही वस्तु तुमको देती हुई मैं पल-पल तुम पर बलिहारी- न्यौछावर हूँ ॥ 2॥

हे प्यारे! मैं अपने मन की बात विवेकपूर्वक- होश-हवाश में तुमसे कैसे कहूँ? औरों के तो अनेक हैं, परंतु मेरे तो हे प्रियतम! तुम एक ही हो ॥ 3॥

अधिक क्या कहूँ, मेरे सम्पूर्ण साधनों की सिद्धि- सफलता एकमात्र तुम्हीं हो। तुम ही मेरे प्राणनाथ हो और तुम्हीं मेरा नित्य ऐश्वर्य- स्थिर सम्पत्ति हो, केवल इतनी बात मैं जानती हूँ ॥ 4॥

देह, धन और परिवार का बन्धन टूट गया; भोग और मोक्ष का रोग भी मिट गया। एक तुम्हारा प्यार संयोग- मिलन पाकर हे प्रियतम! मैं धन्य-धन्य हो गयी ॥ 5॥


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

राधा माधव रस सुधा
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. महाभाव-रसराज-वन्दना 2
2. राग मालकोस-तीन ताल 4
3. राग रागेश्वर-ताल दादरा 6
4. राग भैरव-तीन ताल 8
5. राग भैरवी-तीन ताल 10
6. राग परज-तीन ताल 12
7. राग परज-तीन ताल 14
8. राग भैरवी तर्ज-तीन ताल 16
9. राग भैरवी तर्ज-तीन ताल 18
10. राग गूजर-ताल कहरवा 20
11. राग गूजर-ताल कहरवा 22
12. राग शिवरंजन-तीन ताल 24
13. राग शिवरंजन-तीन ताल 26
14. राग वागेश्र-तीन ताल 28
15. राग वागेश्र-तीन ताल 30
16. राग भैरव-तीन ताल 34
17. राग भैरवी तर्ज-तीन ताल 36
18. पुष्पिका 38
अंतिम पृष्ठ 39

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