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श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतनश्रीकृष्ण के पीछे ही अर्जुन भी रथ से कुद पड़े थे। भीष्म के पास पहुँचते-पहुँचते उन्होंने श्रीकृष्ण को पकड़ लिया। कुछ दूर तक घसीट ले जाने के बाद वे रुक गये। अर्जुन स्नेहपूर्ण नम्र स्वर में श्रीकृष्ण से कहने लगे-'श्रीकृष्ण! आप पहले युद्ध न करने की प्रतिज्ञा कर चुके हैं। उसे अन्यथा मत कीजिये, यदि आप शस्त्र लेकर पितामह से लड़ेंगे, तो सब लोग आपको मिथ्यावादी कहेंगे, इसकी जिम्मेदारी मुझ पर है। मैं शस्त्र, सत्य और सुकृत की शपथ लेकर कहता हूँ कि मैं युद्ध में भीष्म को मारुंगा।' श्रीकृष्ण अर्जुन के साथ रथ पर लौट गये और फिर दोनों ओर से बाणवर्षा होने लगी। नवें दिन के युद्ध में पाण्डवों की सेना क्षत-विक्षत हो गयी। सभी वीर थक गये। सूर्यास्त होने के कुछ पूर्व संध्या, विश्राम आदि करने के लिये युद्ध बंद होने की घोषणा कर दी गयी। रात में कृष्ण और पाण्डव इकट्ठे हुए। युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण की ओर देखकर कहा- 'भगवन्! भीष्म हमारी सेना को नष्ट कर रहे हैं। शस्त्र वर्षा करते समय उन्हें साक्षात् इन्द्र और यमराज भी नहीं हरा सकते, हम लोगों की तो बात ही क्या है? हमसे तो युद्ध के समय उनकी ओर देखा ही नहीं जाता। हमारी सेना प्रतिदिन क्षीण होती जा रही है। अब युद्ध करने की इच्छा नहीं होती। इस नरसंहार की अपेक्षा तो जंगल में रहकर जीवन बिता देना ही अच्छा है। युद्ध ठानकर मैंने विनाश के पथ पर पैर रखा है। आपकी क्या सम्मति है? आप धर्म के अनुकूल मेरे हित का उपदेश कीजिये।' श्रीकृष्ण ने भीम, अर्जुन आदि पाण्डवों के बल की प्रशंसा करते हुए कहा कि 'चिन्ता करने की कोई बात नहीं है। आपके भाई भीष्म को परास्त कर सकते हैं, परंतु यदि इन पर आप विश्वास न रखते हों तो मुझे युद्ध करने की आज्ञा दीजिये। अर्जुन यदि स्वयं भीष्म को मारना नहीं चाहते तो मैं स्वयं उनके सामने भीष्म को मारूँगा। यदि केवल भीष्म के मरने से ही आपको विजय की आशा है तो मैं अकेले ही कल भीष्म को मार डालूँगा। मैं आप लोगों से अलग नहीं हूँ। जो आपका शत्रु है, वह मेरा भी शत्रु है; विशेष करके अर्जुन मेरे भाई, सखा, सम्बन्धी और शिष्य हैं। मैं उनके लिये अपने शरीर का मांस काटकर दे सकता हूँ। भीष्म को मारना कौन-सी बड़ी बात है।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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