भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 54

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी

उनके पक्ष में केवल द्रुपद कुमार शिखण्डी ही ऐसा है, जिससे मैं युद्ध नहीं कर सकता। शिखण्डी पूर्वजन्म में काशिराज की कन्या अम्बा था। मुझे मारने के लिये अम्बा ने तपस्या की और अब वह द्रुपद के यहाँ शिखण्डनी के रूप में पैदा हुई है। एक यक्ष की कृपा से शिखण्डिनी इस समय शिखण्डी हो गयी है, परंतु पहले स्त्री होने के कारण शिखण्डी पर मैं शस्त्र-प्रहार नहीं करूँगा।' दुर्योधन ने उनकी बात स्वीकार की।

इसके बाद कौरव और पाण्डवों ने युद्ध के नियम निश्चित किये। यह नियम बना कि सायंकाल युद्ध बंद हो जाने पर सब परस्पर मित्र का व्यवहार करेंगे। समान शक्ति रखने वाले ही एक-दूसरे से न्यायानुसार युद्ध करेंगे। युद्ध में कोई किसी को धोखा न देगा, अन्याय नहीं करेगा। वाणी का युद्ध करने वालों से केवल वाणी का युद्ध किया जायेगा। जो भागकर या किसी अन्य कारण से सेना के व्यूह से बाहर निकल जायेंगे, उन पर कोई प्रहार नहीं करेगा। रथी रथी के साथ, हाथी का सवार हाथी के सवार के साथ, घुड़सवार घुड़सवार के साथ, पैदल सिपाही पैदल सिपाही के साथ, योग्यता, इच्छा, उत्साह और बल के अनुसार युद्ध करेंगे। पहले सावधान करके पीछे प्रहार किया जायेगा। विश्वास रहने से असावधान, विव्हल और भयभीत व्यक्ति पर प्रहार नहीं किया जायेगा। जो पुरुष एक व्यक्ति से लड़ता होगा, जिसका कवच कट गया होगा, जिसका शस्त्र टूट गया होगा या शस्त्र न रह जाने के कारण जो निहत्था होगा, ऐसे लोगों पर कभी कोई प्रहार नहीं करेगा। सारथी पर, भार ढोने वाले हाथी, घोड़े, बैल आदि पर, शस्त्र बनाने की जीविका वालों पर या शस्त्र पहुँचाने वालों पर, शंख नगाड़ा आदि बजाने वालों पर कभी कोई प्रहार नहीं करेगा।

ये भारतीय महायुद्ध के नियम थे। आज का संसार, जो अपनी सभ्यता की बहुत डींग हाँकता है, तनिक बुद्धि लगाकर आज की सत्यानाशी सभ्यता से उस प्राचीन सभ्यता की तुलना करे। आज के भयंकर महायुद्ध में गैस से बचने के लिये नाक और मुँह पर कवच लगाने वाले सैंनिक सुरक्षित हैं: परंतु गाँव में रहने वाले अनाथ बच्चे, स्त्री और अपाहिज, जिनका युद्ध से कोई सम्बन्ध नहीं, बहुत बड़े खतरे में हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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