विषय सूची
श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दीउनके पक्ष में केवल द्रुपद कुमार शिखण्डी ही ऐसा है, जिससे मैं युद्ध नहीं कर सकता। शिखण्डी पूर्वजन्म में काशिराज की कन्या अम्बा था। मुझे मारने के लिये अम्बा ने तपस्या की और अब वह द्रुपद के यहाँ शिखण्डनी के रूप में पैदा हुई है। एक यक्ष की कृपा से शिखण्डिनी इस समय शिखण्डी हो गयी है, परंतु पहले स्त्री होने के कारण शिखण्डी पर मैं शस्त्र-प्रहार नहीं करूँगा।' दुर्योधन ने उनकी बात स्वीकार की। इसके बाद कौरव और पाण्डवों ने युद्ध के नियम निश्चित किये। यह नियम बना कि सायंकाल युद्ध बंद हो जाने पर सब परस्पर मित्र का व्यवहार करेंगे। समान शक्ति रखने वाले ही एक-दूसरे से न्यायानुसार युद्ध करेंगे। युद्ध में कोई किसी को धोखा न देगा, अन्याय नहीं करेगा। वाणी का युद्ध करने वालों से केवल वाणी का युद्ध किया जायेगा। जो भागकर या किसी अन्य कारण से सेना के व्यूह से बाहर निकल जायेंगे, उन पर कोई प्रहार नहीं करेगा। रथी रथी के साथ, हाथी का सवार हाथी के सवार के साथ, घुड़सवार घुड़सवार के साथ, पैदल सिपाही पैदल सिपाही के साथ, योग्यता, इच्छा, उत्साह और बल के अनुसार युद्ध करेंगे। पहले सावधान करके पीछे प्रहार किया जायेगा। विश्वास रहने से असावधान, विव्हल और भयभीत व्यक्ति पर प्रहार नहीं किया जायेगा। जो पुरुष एक व्यक्ति से लड़ता होगा, जिसका कवच कट गया होगा, जिसका शस्त्र टूट गया होगा या शस्त्र न रह जाने के कारण जो निहत्था होगा, ऐसे लोगों पर कभी कोई प्रहार नहीं करेगा। सारथी पर, भार ढोने वाले हाथी, घोड़े, बैल आदि पर, शस्त्र बनाने की जीविका वालों पर या शस्त्र पहुँचाने वालों पर, शंख नगाड़ा आदि बजाने वालों पर कभी कोई प्रहार नहीं करेगा। ये भारतीय महायुद्ध के नियम थे। आज का संसार, जो अपनी सभ्यता की बहुत डींग हाँकता है, तनिक बुद्धि लगाकर आज की सत्यानाशी सभ्यता से उस प्राचीन सभ्यता की तुलना करे। आज के भयंकर महायुद्ध में गैस से बचने के लिये नाक और मुँह पर कवच लगाने वाले सैंनिक सुरक्षित हैं: परंतु गाँव में रहने वाले अनाथ बच्चे, स्त्री और अपाहिज, जिनका युद्ध से कोई सम्बन्ध नहीं, बहुत बड़े खतरे में हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज