प्रेम सुधा सागर पृ. 390

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(उत्तरार्ध)
सत्तावनवाँ अध्याय

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अक्रूर और कृतवर्मा ने शतधन्वा को सत्राजित के वध के लिये उत्तेजित किया था। इसलिये जब उन्होंने सुना कि भगवान श्रीकृष्ण ने शतधन्वा को मार डाला है, तब वे अत्यन्त भयभीत होकर द्वारका से भाग खड़े हुए। परीक्षित्! कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि अक्रूर के द्वारका से चले जाने पर द्वारकावासियों को बहुत प्रकार के अनिष्टों और अरिष्टों का सामना करना पड़ा। दैविक और भौतिक निमित्तों से बार-बार वहाँ के नागरिकों को शारीरिक और मानसिक कष्ट सहना पड़ा। परन्तु जो लोग ऐसा कहते हैं, वे पहले कही हुई बातों को भूल जाते हैं। भला, यह भी कभी सम्भव है कि कि जिन भगवान श्रीकृष्ण में समस्त ऋषि-मुनि निवास करते हैं, उनके निवासस्थान द्वारका में उनके रहते कोई उपद्रव खड़ा हो जाय। उस समय नगर के बड़े-बूढ़े लोगों ने कहा—‘एक बार काशी-नरेश के राज्य में वर्षा नहीं हो रही थी, सुखा पड़ गया था।

तब उन्होंने अपने राज्य में आये हुए अक्रूर के पिता स्वफल्क को अपनी पुत्री गान्दिनी ब्याह दी। तब उस प्रदेश में वर्षा हुई। अक्रूर भी स्वफल्क के ही पुत्र हैं और इनका प्रभाव भी वैसा ही है। इसलिये जहाँ-जहाँ अक्रूर रहते हैं, वहाँ-वहाँ खूब वर्षा होती है तथा किसी प्रकार का कष्ट और महामारी आदि उपद्रव नहीं होते।’ परीक्षित्! उन लोगों की बात सुनकर भगवान ने सोचा कि ‘इस उपद्रव का यही कारण नहीं है’ यह जानकर भी भगवान ने दूत भेजकर अक्रूर जी को ढूँढवाया और आने पर उनसे बातचीत की। भगवान ने उनका खूब स्वागत-सत्कार किया और मीठी-मीठी प्रेम की बातें कहकर उनसे सम्भाषण किया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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