श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य पृ. 13

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य

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स्वप्रयोजनाभावे अपि भूतानुजिघृक्षया वैदिंक हि धर्मद्वयम् अर्जुनाय शोकमोह महोदधौ निमग्नाय उपदिदेश, गुणाधिकैः हि गृहीतः अनुष्ठीयमानः च धर्मः प्रचयं गमिष्यति इति।

तं धर्म भगवता यथोपदिष्टं वेदव्यासः सर्वज्ञो भगवान् गीताख्यैः सप्तभिः श्लोकशतैः उपनिबबंध।

तद् इदं गीताशास्त्रं समस्तवेदार्थसारसंगहभूतं दुर्विज्ञेयार्थम्।

बहुत काल के बाद जब धर्मानुष्ठान करने वालों के अंतःकरण में कामनाओं का विकास होने से विवेक विज्ञान का ह्रास हो जाना ही जिसकी उत्पत्ति का कारण है ऐसे अधर्म से धर्म दबता जाने लगा और अधर्म की वृद्धि होने लगी तब जगत् की स्थिति सुरक्षित रखने की इच्छा वाले वे आदि कर्ता नारायण नामक श्रीविष्णु भगवान् भूलोक के ब्रह्म की अर्थात् भूदेवों (ब्राह्मणों) के ब्राह्मणत्व की रक्षा करने के लिए श्री वसुदेवजी से श्रीदेवकीजी के गर्भ में अपने अंश से (लीलाविग्रह से) श्रीकृष्ण रूप में प्रकट हुए। यह प्रसिद्ध है।

ब्राह्मणत्व की रक्षा से ही वैदिक धर्म सुरक्षित रह सकता है, क्योंकि वर्णाश्रमों के भेद उसी के अधीन हैं।

ज्ञान, ऐश्वर्य, शक्ति, बल, वीर्य और तेज आदि से सदा संपन्न वे भगवान् यद्यपि अज, अविनाशी, संपूर्ण भूतों के ईश्वर और नित्य शुद्ध-बुद्ध मुक्त स्वभाव हैं, तो भी अपनी त्रिगुणात्मिका मूल प्रकृति वैष्णवी माया को वश में करके अपनी लीला से शरीरधारी की तरह उत्पन्न हुए से और लोगों पर अनुग्रह करते हुए से दीखते हैं।

अपना कोई प्रयोजन न रहने पर भी भगवान् ने भूतों पर दया करने की इच्छा से, यह सोचकर कि अधिक गुणवान् पुरुषों द्वारा ग्रहण किया हुआ और आचरण किया हुआ धर्म अधिक विस्तार को प्राप्त होगा, शोकमोह रूप महत्समुद्र में डूबे हुए अर्जुन को दोनों ही प्रकार के वैदिक धर्मों का उपदेश किया।

उक्त दोनों प्रकार के धर्मों को भगवान् ने जैसे-जैसे कहा था ठीक वैसे ही सर्वज्ञ भगवान् वेदव्यासजी ने गीता नामक सात सौ श्लोकों के रूप में ग्रथित किया। ऐसा यह गीताशास्त्र संपूर्ण वेदार्थ का सार संग्रह रूप है और इसका अर्थ समझने में अत्यंत कठिन है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. प्रथम अध्याय 16
2. द्वितीय अध्याय 26
3. तृतीय अध्याय 114
4. चतुर्थ अध्याय 162
5. पंचम अध्याय 216
6. षष्ठम अध्याय 254
7. सप्तम अध्याय 297
8. अष्टम अध्याय 318
9. नवम अध्याय 339
10. दशम अध्याय 364
11. एकादश अध्याय 387
12. द्वादश अध्याय 420
13. त्रयोदश अध्याय 437
14. चतुर्दश अध्याय 516
15. पंचदश अध्याय 536
16. षोडश अध्याय 557
17. सप्तदश अध्याय 574
18. अष्टादश अध्याय 591
अंतिम पृष्ठ 699

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