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कविता भाटिया (वार्ता | योगदान) |
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− | सहिष्णुता बड़ी आवश्यक है। किसी के द्वारा अपमान भी हो जाये तो सहसा आपे से बाहर नहीं हो जाना चाहिये। नम्रभाव से ही रहना चाहिये। जो ऐसा व्यवहार करता है, उसे कष्ट नहीं उठाना पड़ता। इस विषय में एक प्राचीन इतिहास है। एक बार समुद्र ने अपने में मिलने वाली नदियों से पूछा कि 'नदियो! तुम्हारे प्रवाह में बड़े-बड़े वृक्ष जड़ से उखड़े हुए आते हैं, परंतु आज तक किसी के प्रवाह में बेंत का वृक्ष नहीं आया, इसका कारण क्या है? क्या तुम लोग अपने तट पर लगे हुए बेंतों को तुच्छ समझकर उन्हें लाती ही नहीं हो अथवा उनसे तुम्हारी मित्रता है?' इसके उत्तर में श्रीगंगाजी ने कहा कि 'स्वामिन्! दूसरे वृक्ष् हमारे आने पर अकड़े हुए खड़े रहते हैं, वे एक प्रकार से हमारा विरोध करते हैं, परंतु बेंत ऐसा नहीं करता। वह हम लोगों के वेग को देखकर झुक जाता है और प्रवाह का वेग निकल जाने पर, ज्यों-का-त्यों खड़ा हो जाता है। वह अवसर जानने वाला, सहिष्णु, विनयी और हमारे अनुकूल है, इसी से हम उसे नहीं उखाड़तीं।' वायु के वेग में भी यही बात है। जो वृक्ष्-लता, झाड़-झंखाड़ वायु के सामने नतमस्तक हो जाते हैं, वे नहीं उखड़ते। नम्र हो जाना बुद्धिमानों का लक्षण है। | + | सहिष्णुता बड़ी आवश्यक है। किसी के द्वारा अपमान भी हो जाये तो सहसा आपे से बाहर नहीं हो जाना चाहिये। नम्रभाव से ही रहना चाहिये। जो ऐसा व्यवहार करता है, उसे कष्ट नहीं उठाना पड़ता। इस विषय में एक प्राचीन इतिहास है। एक बार [[समुद्र]] ने अपने में मिलने वाली नदियों से पूछा कि 'नदियो! तुम्हारे प्रवाह में बड़े-बड़े वृक्ष जड़ से उखड़े हुए आते हैं, परंतु आज तक किसी के प्रवाह में बेंत का वृक्ष नहीं आया, इसका कारण क्या है? क्या तुम लोग अपने तट पर लगे हुए बेंतों को तुच्छ समझकर उन्हें लाती ही नहीं हो अथवा उनसे तुम्हारी मित्रता है?' इसके उत्तर में श्रीगंगाजी ने कहा कि 'स्वामिन्! दूसरे वृक्ष् हमारे आने पर अकड़े हुए खड़े रहते हैं, वे एक प्रकार से हमारा विरोध करते हैं, परंतु बेंत ऐसा नहीं करता। वह हम लोगों के वेग को देखकर झुक जाता है और प्रवाह का वेग निकल जाने पर, ज्यों-का-त्यों खड़ा हो जाता है। वह अवसर जानने वाला, सहिष्णु, विनयी और हमारे अनुकूल है, इसी से हम उसे नहीं उखाड़तीं।' [[वायु]] के वेग में भी यही बात है। जो वृक्ष्-लता, झाड़-झंखाड़ [[वायु]] के सामने नतमस्तक हो जाते हैं, वे नहीं उखड़ते। नम्र हो जाना बुद्धिमानों का लक्षण है। |
− | मनुष्य को सर्वदा चरित्रवान् होना चाहिये। प्रह्लाद ने अपने चरित्र के बल से इन्द्र का राज्य प्राप्त कर लिया। इन्द्र को बड़ी चिन्ता हुई, वे अपने गुरु के पास गये। उन्होंने राज्य-प्राप्ति का उपाय पूछा तब देवगुरु बृहस्पति ने कहा कि ज्ञान प्राप्त करो। इन्द्र ने जब इससे भी उत्तम उपाय पूछा, तब उन्होंने शुक्राचार्य के पास भेज दिया। शुक्राचार्य ने [[प्रह्लाद]] के पास भेजा। इन्द्र वेश बदलकर प्रह्लाद के पास पहुँचे और उन्होंने उनसे प्रार्थना की कि 'आप मुझे ऐश्वर्य-प्राप्ति का उपदेश कीजिये।' प्रह्लाद ने कहा-'मैं राजकाज में लगा हूँ, मुझे उपदेश करने का अवसर ही कहाँ है?' इन्द्र ने कहा-'आपको जब अवसर मिले तभी उपदेश कीजियेगा।' प्रह्लाद बहुत प्रसन्न हुए, वे समय मिलने पर उपदेश करते। इन्द्र ब्राह्मण के वेश में उनके पास रहकर नम्रतापूर्वक उनकी सेवा करने लगे। | + | मनुष्य को सर्वदा चरित्रवान् होना चाहिये। [[प्रह्लाद]] ने अपने चरित्र के बल से [[इन्द्र]] का राज्य प्राप्त कर लिया। इन्द्र को बड़ी चिन्ता हुई, वे अपने गुरु के पास गये। उन्होंने राज्य-प्राप्ति का उपाय पूछा तब देवगुरु [[बृहस्पति]] ने कहा कि ज्ञान प्राप्त करो। [[इन्द्र]] ने जब इससे भी उत्तम उपाय पूछा, तब उन्होंने [[शुक्राचार्य]] के पास भेज दिया। शुक्राचार्य ने [[प्रह्लाद]] के पास भेजा। इन्द्र वेश बदलकर प्रह्लाद के पास पहुँचे और उन्होंने उनसे प्रार्थना की कि 'आप मुझे ऐश्वर्य-प्राप्ति का उपदेश कीजिये।' [[प्रह्लाद]] ने कहा- 'मैं राजकाज में लगा हूँ, मुझे उपदेश करने का अवसर ही कहाँ है?' इन्द्र ने कहा- 'आपको जब अवसर मिले तभी उपदेश कीजियेगा।' प्रह्लाद बहुत प्रसन्न हुए, वे समय मिलने पर उपदेश करते। इन्द्र [[ब्राह्मण]] के वेश में उनके पास रहकर नम्रतापूर्वक उनकी सेवा करने लगे। |
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16:26, 31 मार्च 2018 के समय का अवतरण
विषय सूची
श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
पितामह का उपदेशसहिष्णुता बड़ी आवश्यक है। किसी के द्वारा अपमान भी हो जाये तो सहसा आपे से बाहर नहीं हो जाना चाहिये। नम्रभाव से ही रहना चाहिये। जो ऐसा व्यवहार करता है, उसे कष्ट नहीं उठाना पड़ता। इस विषय में एक प्राचीन इतिहास है। एक बार समुद्र ने अपने में मिलने वाली नदियों से पूछा कि 'नदियो! तुम्हारे प्रवाह में बड़े-बड़े वृक्ष जड़ से उखड़े हुए आते हैं, परंतु आज तक किसी के प्रवाह में बेंत का वृक्ष नहीं आया, इसका कारण क्या है? क्या तुम लोग अपने तट पर लगे हुए बेंतों को तुच्छ समझकर उन्हें लाती ही नहीं हो अथवा उनसे तुम्हारी मित्रता है?' इसके उत्तर में श्रीगंगाजी ने कहा कि 'स्वामिन्! दूसरे वृक्ष् हमारे आने पर अकड़े हुए खड़े रहते हैं, वे एक प्रकार से हमारा विरोध करते हैं, परंतु बेंत ऐसा नहीं करता। वह हम लोगों के वेग को देखकर झुक जाता है और प्रवाह का वेग निकल जाने पर, ज्यों-का-त्यों खड़ा हो जाता है। वह अवसर जानने वाला, सहिष्णु, विनयी और हमारे अनुकूल है, इसी से हम उसे नहीं उखाड़तीं।' वायु के वेग में भी यही बात है। जो वृक्ष्-लता, झाड़-झंखाड़ वायु के सामने नतमस्तक हो जाते हैं, वे नहीं उखड़ते। नम्र हो जाना बुद्धिमानों का लक्षण है। मनुष्य को सर्वदा चरित्रवान् होना चाहिये। प्रह्लाद ने अपने चरित्र के बल से इन्द्र का राज्य प्राप्त कर लिया। इन्द्र को बड़ी चिन्ता हुई, वे अपने गुरु के पास गये। उन्होंने राज्य-प्राप्ति का उपाय पूछा तब देवगुरु बृहस्पति ने कहा कि ज्ञान प्राप्त करो। इन्द्र ने जब इससे भी उत्तम उपाय पूछा, तब उन्होंने शुक्राचार्य के पास भेज दिया। शुक्राचार्य ने प्रह्लाद के पास भेजा। इन्द्र वेश बदलकर प्रह्लाद के पास पहुँचे और उन्होंने उनसे प्रार्थना की कि 'आप मुझे ऐश्वर्य-प्राप्ति का उपदेश कीजिये।' प्रह्लाद ने कहा- 'मैं राजकाज में लगा हूँ, मुझे उपदेश करने का अवसर ही कहाँ है?' इन्द्र ने कहा- 'आपको जब अवसर मिले तभी उपदेश कीजियेगा।' प्रह्लाद बहुत प्रसन्न हुए, वे समय मिलने पर उपदेश करते। इन्द्र ब्राह्मण के वेश में उनके पास रहकर नम्रतापूर्वक उनकी सेवा करने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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