('<div class="bgmbdiv"> <h3 style="text-align:center">'''श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
कविता भाटिया (वार्ता | योगदान) |
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<h4 style="text-align:center">'''श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध'''</h4> | <h4 style="text-align:center">'''श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध'''</h4> | ||
− | [[भीष्म]] ने हाथ जोड़कर कहा-'भगवन्! आपके वचनों से मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। मैं भला आपके सामने किस धर्म का वर्णन कर सकता हूँ? संसार में जितने धर्म-अधर्म कहे जाते हैं, मनुष्यों के लिये जो कुछ कर्तव्य-अकर्तव्य निश्चित हैं, उन सबके मूल कारण आप ही हैं। जैसे इन्द्र के सामने कोई देवलोक का वर्णन करें, वैसे ही आपके सामने धर्म-रहस्य का वर्णन करना है। बाणों के आघात से मेरा शरीर व्यथित है, हृदय पीड़ित है और बुद्धि क्षीण हो गयी है। वाणी असमर्थ हो गयी है, बल नष्ट हो चुका है। प्राण निकलने के लिये जल्दी कर रहे हैं। आपके प्रभाव से ही मैं जीवित हूँ। आप सम्पूर्ण ज्ञानों के निधि हैं। आपके सामने मैं क्या उपदेश कर सकता हूँ? गुरु के सामने शिष्य क्या बोल सकता है? इसलिये मुझे क्षमा कीजिये। आप ही धर्मराज को धर्म का उपदेश दीजिये।' | + | [[भीष्म]] ने हाथ जोड़कर कहा-'भगवन्! आपके वचनों से मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। मैं भला आपके सामने किस धर्म का वर्णन कर सकता हूँ? संसार में जितने धर्म-अधर्म कहे जाते हैं, मनुष्यों के लिये जो कुछ कर्तव्य-अकर्तव्य निश्चित हैं, उन सबके मूल कारण आप ही हैं। जैसे [[इन्द्र]] के सामने कोई देवलोक का वर्णन करें, वैसे ही आपके सामने धर्म-रहस्य का वर्णन करना है। बाणों के आघात से मेरा शरीर व्यथित है, हृदय पीड़ित है और बुद्धि क्षीण हो गयी है। वाणी असमर्थ हो गयी है, बल नष्ट हो चुका है। प्राण निकलने के लिये जल्दी कर रहे हैं। आपके प्रभाव से ही मैं जीवित हूँ। आप सम्पूर्ण ज्ञानों के निधि हैं। आपके सामने मैं क्या उपदेश कर सकता हूँ? गुरु के सामने शिष्य क्या बोल सकता है? इसलिये मुझे क्षमा कीजिये। आप ही धर्मराज को धर्म का उपदेश दीजिये।' |
[[श्रीकृष्ण]] ने कहा-'पितामह! आप सब तत्वों के ज्ञाता, शक्तिशाली और भरतवंश के भूषण हैं। इसलिये आपके ये विनीत वचन आपके योग्य ही हैं बाणों के घाव के कारण शरीर में पीड़ा है तो मैं आपको यह वरदान देता हूँ कि आपकी ग्लानि, मूर्छा, जलन और भूख-प्यास मिट जाये, आपके हृदय में सब ज्ञान जाग्रत हो जायें। आपकी बुद्धि निर्मल हो जाये, आपके मन से रजोगुण और तमोगुण हट जायें, केवल सत्वगुण ही रह जाये। आप धर्म और अर्थ के सम्बन्ध में जितना विचार करेंगे, आपकी बुद्धि उतनी ही बढ़ती जायेगी। आपको दिव्य दृष्टि प्राप्त हो जायेगी और आप सब वस्तुओं का रहस्य जान सकेंगे।' | [[श्रीकृष्ण]] ने कहा-'पितामह! आप सब तत्वों के ज्ञाता, शक्तिशाली और भरतवंश के भूषण हैं। इसलिये आपके ये विनीत वचन आपके योग्य ही हैं बाणों के घाव के कारण शरीर में पीड़ा है तो मैं आपको यह वरदान देता हूँ कि आपकी ग्लानि, मूर्छा, जलन और भूख-प्यास मिट जाये, आपके हृदय में सब ज्ञान जाग्रत हो जायें। आपकी बुद्धि निर्मल हो जाये, आपके मन से रजोगुण और तमोगुण हट जायें, केवल सत्वगुण ही रह जाये। आप धर्म और अर्थ के सम्बन्ध में जितना विचार करेंगे, आपकी बुद्धि उतनी ही बढ़ती जायेगी। आपको दिव्य दृष्टि प्राप्त हो जायेगी और आप सब वस्तुओं का रहस्य जान सकेंगे।' | ||
− | भगवान् श्रीकृष्ण की यह दिव्य वाणी सुनकर वेदव्यास आदि ऋषि-महर्षियों ने उनकी स्तुति की। आकाशमण्डल से श्रीकृष्ण, भीष्म और पाण्डवों पर पुष्पवर्षा होने लगी। अप्सराऐं गाने लगीं, [[गन्धर्व]] बजाने लगे। शीतल, मन्द, सुगन्ध हवा चलने लगी और दिशाऐं शान्त हो गयीं। सुन्दर-सुन्दर पक्षी चहकने लगे। भीष्म की चेतना जाग्रत हो गयी। उनकी बुद्धि में सम्पूर्ण ज्ञान स्फुरित होने लगा। चारों ओर मंगलमय शकुन होने लगे। | + | [[भगवान श्रीकृष्ण|भगवान् श्रीकृष्ण]] की यह दिव्य वाणी सुनकर [[वेदव्यास]] आदि ऋषि-महर्षियों ने उनकी स्तुति की। आकाशमण्डल से श्रीकृष्ण, भीष्म और पाण्डवों पर पुष्पवर्षा होने लगी। अप्सराऐं गाने लगीं, [[गन्धर्व]] बजाने लगे। शीतल, मन्द, सुगन्ध हवा चलने लगी और दिशाऐं शान्त हो गयीं। सुन्दर-सुन्दर पक्षी चहकने लगे। भीष्म की चेतना जाग्रत हो गयी। उनकी बुद्धि में सम्पूर्ण ज्ञान स्फुरित होने लगा। चारों ओर मंगलमय शकुन होने लगे। |
संध्या हो चली थी। ऋषियों की अनुमति से दूसरे दिन फिर यहाँ मिलने की सलाह करके सब अपने-अपने स्थान पर चले गये। | संध्या हो चली थी। ऋषियों की अनुमति से दूसरे दिन फिर यहाँ मिलने की सलाह करके सब अपने-अपने स्थान पर चले गये। |
16:03, 31 मार्च 2018 के समय का अवतरण
विषय सूची
श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोधभीष्म ने हाथ जोड़कर कहा-'भगवन्! आपके वचनों से मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। मैं भला आपके सामने किस धर्म का वर्णन कर सकता हूँ? संसार में जितने धर्म-अधर्म कहे जाते हैं, मनुष्यों के लिये जो कुछ कर्तव्य-अकर्तव्य निश्चित हैं, उन सबके मूल कारण आप ही हैं। जैसे इन्द्र के सामने कोई देवलोक का वर्णन करें, वैसे ही आपके सामने धर्म-रहस्य का वर्णन करना है। बाणों के आघात से मेरा शरीर व्यथित है, हृदय पीड़ित है और बुद्धि क्षीण हो गयी है। वाणी असमर्थ हो गयी है, बल नष्ट हो चुका है। प्राण निकलने के लिये जल्दी कर रहे हैं। आपके प्रभाव से ही मैं जीवित हूँ। आप सम्पूर्ण ज्ञानों के निधि हैं। आपके सामने मैं क्या उपदेश कर सकता हूँ? गुरु के सामने शिष्य क्या बोल सकता है? इसलिये मुझे क्षमा कीजिये। आप ही धर्मराज को धर्म का उपदेश दीजिये।' श्रीकृष्ण ने कहा-'पितामह! आप सब तत्वों के ज्ञाता, शक्तिशाली और भरतवंश के भूषण हैं। इसलिये आपके ये विनीत वचन आपके योग्य ही हैं बाणों के घाव के कारण शरीर में पीड़ा है तो मैं आपको यह वरदान देता हूँ कि आपकी ग्लानि, मूर्छा, जलन और भूख-प्यास मिट जाये, आपके हृदय में सब ज्ञान जाग्रत हो जायें। आपकी बुद्धि निर्मल हो जाये, आपके मन से रजोगुण और तमोगुण हट जायें, केवल सत्वगुण ही रह जाये। आप धर्म और अर्थ के सम्बन्ध में जितना विचार करेंगे, आपकी बुद्धि उतनी ही बढ़ती जायेगी। आपको दिव्य दृष्टि प्राप्त हो जायेगी और आप सब वस्तुओं का रहस्य जान सकेंगे।' भगवान् श्रीकृष्ण की यह दिव्य वाणी सुनकर वेदव्यास आदि ऋषि-महर्षियों ने उनकी स्तुति की। आकाशमण्डल से श्रीकृष्ण, भीष्म और पाण्डवों पर पुष्पवर्षा होने लगी। अप्सराऐं गाने लगीं, गन्धर्व बजाने लगे। शीतल, मन्द, सुगन्ध हवा चलने लगी और दिशाऐं शान्त हो गयीं। सुन्दर-सुन्दर पक्षी चहकने लगे। भीष्म की चेतना जाग्रत हो गयी। उनकी बुद्धि में सम्पूर्ण ज्ञान स्फुरित होने लगा। चारों ओर मंगलमय शकुन होने लगे। संध्या हो चली थी। ऋषियों की अनुमति से दूसरे दिन फिर यहाँ मिलने की सलाह करके सब अपने-अपने स्थान पर चले गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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