('<div class="bgmbdiv"> <h3 style="text-align:center">'''श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
कविता भाटिया (वार्ता | योगदान) |
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<h4 style="text-align:center">'''भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन'''</h4> | <h4 style="text-align:center">'''भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन'''</h4> | ||
− | उसी समय भगवान् [[श्रीकृष्ण]] ने मुस्कुराते हुए प्रवेश किया। उन्होंने कहा-'आज घोड़ों की देखभाल करने में विशेष विलम्ब हो गया, कहिये आप लोग चुपचाप क्यों बैठे हैं?' युधिष्ठिर ने हाथ जोड़कर कहा-'प्रभो! आपसे क्या छिपा है? क्या आप नहीं जानते कि भीष्म पितामह ने हम पाँचों भाइयों को मारने के लिये पाँच बाण निकाल रखे हैं। हम लोग इसी चिन्ता में थे कि अब हमारी रक्षा कैसे होगी? हमारा जीवन आपके हाथ में है, आपकी इच्छा हो सो कीजिये। बचाइये न बचाइये, हम कुछ नहीं जानते।' | + | उसी समय भगवान् [[श्रीकृष्ण]] ने मुस्कुराते हुए प्रवेश किया। उन्होंने कहा-'आज घोड़ों की देखभाल करने में विशेष विलम्ब हो गया, कहिये आप लोग चुपचाप क्यों बैठे हैं?' [[युधिष्ठिर]] ने हाथ जोड़कर कहा-'प्रभो! आपसे क्या छिपा है? क्या आप नहीं जानते कि भीष्म पितामह ने हम पाँचों भाइयों को मारने के लिये पाँच बाण निकाल रखे हैं। हम लोग इसी चिन्ता में थे कि अब हमारी रक्षा कैसे होगी? हमारा जीवन आपके हाथ में है, आपकी इच्छा हो सो कीजिये। बचाइये न बचाइये, हम कुछ नहीं जानते।' |
− | भगवान् हँसने लगे। उन्होंने कहा-'आज का बचाना न बचाना हमारे हाथ में नहीं है। आज [[द्रौपदी]] चाहे तो तुम लोग बच सकते हो।' द्रौपदी बोल उठीं-'प्रभो! आप क्या कहते हैं? क्या मैं अपने प्राणप्रिय स्वामियों को बचाने की चेष्टा न | + | भगवान् हँसने लगे। उन्होंने कहा-'आज का बचाना न बचाना हमारे हाथ में नहीं है। आज [[द्रौपदी]] चाहे तो तुम लोग बच सकते हो।' द्रौपदी बोल उठीं-'प्रभो! आप क्या कहते हैं? क्या मैं अपने प्राणप्रिय स्वामियों को बचाने की चेष्टा न करूँगी? यदि मेरे बलिदान से भी इन लोगों की रक्षा होती हो तो आप शीघ्र बतावें।' भगवान् ने कहा-'बलिदान करने की कोई बात नहीं है, तुम्हें मेरे साथ [[भीष्म पितामह]] के पास चलना पड़ेगा।' द्रौपदी तैयार हो गयी, आगे-आगे द्रौपदी और पीछे-पीछे [[भगवान श्रीकृष्ण|भगवान् श्रीकृष्ण]] चलने लगे। इस प्रकार उन्होंने पाण्डवों की सेना के अंदर का मार्ग समाप्त किया। |
− | कौरवों की सेना में प्रवेश करने के पहले ही भगवान् ने कहा कि द्रौपदी! तुम्हारा और सब शरीर तो चादर से ढका है, परंतु तुम्हारी जूतियाँ साफ दीख रही हैं। उनके पंजाबी होने के कारण सब लोग समझ जायेंगे कि पंजाब की बनी हुई जूतियों को पहनकर द्रौपदी ही जा रही है। तब मुझ पर लोगों को संदेह हो जायेगा, इसलिये तुम अपनी जूतियाँ मुझे दे दो, इससे तुम्हें लोग नहीं पहचान सकेंगे और मुझे भी जूती लिये देखकर सामान्य सेवक ही समझेंगे। द्रौपदी ने कुछ संकोच के साथ, परंतु प्रेम में मुग्ध होकर अपनी जूतियाँ भगवान् को दे दीं। भगवान् की भक्तवत्सलता स्मरण करके आनन्द-विभोर द्रौपदी आगे-आगे चल रही थी और अपने पीताम्बर में द्रौपदी की जूती लपेटकर उसे कांख में दबाये हुए पीछे-पीछे श्रीकृष्ण चल रहे थे। क्या है जगत् में कोई इतना दीनवत्सल स्वामी? | + | कौरवों की सेना में प्रवेश करने के पहले ही भगवान् ने कहा कि [[द्रौपदी]]! तुम्हारा और सब शरीर तो चादर से ढका है, परंतु तुम्हारी जूतियाँ साफ दीख रही हैं। उनके पंजाबी होने के कारण सब लोग समझ जायेंगे कि पंजाब की बनी हुई जूतियों को पहनकर द्रौपदी ही जा रही है। तब मुझ पर लोगों को संदेह हो जायेगा, इसलिये तुम अपनी जूतियाँ मुझे दे दो, इससे तुम्हें लोग नहीं पहचान सकेंगे और मुझे भी जूती लिये देखकर सामान्य सेवक ही समझेंगे। द्रौपदी ने कुछ संकोच के साथ, परंतु प्रेम में मुग्ध होकर अपनी जूतियाँ भगवान् को दे दीं। भगवान् की भक्तवत्सलता स्मरण करके आनन्द-विभोर द्रौपदी आगे-आगे चल रही थी और अपने पीताम्बर में द्रौपदी की जूती लपेटकर उसे कांख में दबाये हुए पीछे-पीछे [[श्रीकृष्ण]] चल रहे थे। क्या है जगत् में कोई इतना दीनवत्सल स्वामी? |
| style="vertical-align:bottom;"| [[चित्र:Next.png|right|link=भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 70]] | | style="vertical-align:bottom;"| [[चित्र:Next.png|right|link=भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 70]] |
14:46, 31 मार्च 2018 के समय का अवतरण
विषय सूची
श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतनउसी समय भगवान् श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए प्रवेश किया। उन्होंने कहा-'आज घोड़ों की देखभाल करने में विशेष विलम्ब हो गया, कहिये आप लोग चुपचाप क्यों बैठे हैं?' युधिष्ठिर ने हाथ जोड़कर कहा-'प्रभो! आपसे क्या छिपा है? क्या आप नहीं जानते कि भीष्म पितामह ने हम पाँचों भाइयों को मारने के लिये पाँच बाण निकाल रखे हैं। हम लोग इसी चिन्ता में थे कि अब हमारी रक्षा कैसे होगी? हमारा जीवन आपके हाथ में है, आपकी इच्छा हो सो कीजिये। बचाइये न बचाइये, हम कुछ नहीं जानते।' भगवान् हँसने लगे। उन्होंने कहा-'आज का बचाना न बचाना हमारे हाथ में नहीं है। आज द्रौपदी चाहे तो तुम लोग बच सकते हो।' द्रौपदी बोल उठीं-'प्रभो! आप क्या कहते हैं? क्या मैं अपने प्राणप्रिय स्वामियों को बचाने की चेष्टा न करूँगी? यदि मेरे बलिदान से भी इन लोगों की रक्षा होती हो तो आप शीघ्र बतावें।' भगवान् ने कहा-'बलिदान करने की कोई बात नहीं है, तुम्हें मेरे साथ भीष्म पितामह के पास चलना पड़ेगा।' द्रौपदी तैयार हो गयी, आगे-आगे द्रौपदी और पीछे-पीछे भगवान् श्रीकृष्ण चलने लगे। इस प्रकार उन्होंने पाण्डवों की सेना के अंदर का मार्ग समाप्त किया। कौरवों की सेना में प्रवेश करने के पहले ही भगवान् ने कहा कि द्रौपदी! तुम्हारा और सब शरीर तो चादर से ढका है, परंतु तुम्हारी जूतियाँ साफ दीख रही हैं। उनके पंजाबी होने के कारण सब लोग समझ जायेंगे कि पंजाब की बनी हुई जूतियों को पहनकर द्रौपदी ही जा रही है। तब मुझ पर लोगों को संदेह हो जायेगा, इसलिये तुम अपनी जूतियाँ मुझे दे दो, इससे तुम्हें लोग नहीं पहचान सकेंगे और मुझे भी जूती लिये देखकर सामान्य सेवक ही समझेंगे। द्रौपदी ने कुछ संकोच के साथ, परंतु प्रेम में मुग्ध होकर अपनी जूतियाँ भगवान् को दे दीं। भगवान् की भक्तवत्सलता स्मरण करके आनन्द-विभोर द्रौपदी आगे-आगे चल रही थी और अपने पीताम्बर में द्रौपदी की जूती लपेटकर उसे कांख में दबाये हुए पीछे-पीछे श्रीकृष्ण चल रहे थे। क्या है जगत् में कोई इतना दीनवत्सल स्वामी? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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