स्याम! तोय नैननि रखूँ छिपाय -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा के प्रेमोद्गार-श्रीकृष्ण के प्रति

Prev.png
राग प्रभाती - ताल दीपचंदी


स्याम! तोय नैननि रखूँ छिपाय।
प्रेम-डोर तैं बाँधि चरन तव, राखूँ उर बिच लाय॥
देखन दऊँ न काहू कौं मैं कबहुँ परम धन रम्य।
किंतु बन्यौ वह रहै निरंतर मेरे लोचन-गम्य॥
कबहुँ नायँ मैं देखयौ-जान्यौ मन तैं काहू अन्य।
सौंपि सहज सर्बस्व समुद, हौं भ‌ई सबहि विधि धन्य॥
देखत-सुनत, खात-पीवत, सब करत जगत-यौहार।
जागत-सोवत सदा एक, बस, सुरति तुम्हारी सार॥
तन-मन, धन-जन, जीवन-जौबन, ममता-मद-‌अभिमान।
प्रानि-पदार्थ-परिस्थिति सब कुछ तुम, प्राननि के प्रान॥
पलक अदरसन सहन होत नहिं, व्याकुल चित्त अधीर।
निकसन चहत प्रान तब तन तैं, बढ़त भयानक पीर॥
हौं अति दीन-मलीन, रूप-गुन-हीना अबला नारि।
अवहेला मत करियो कबहूँ, निज दिसि देखि मुरारि!
रहियो सदा बसे प्राननि में, सदा कीजियो सार।
जानि मोय चेरी चरननि की, रखियो नित्य दुलार॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः