तुम करते रहो रसिकवर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा के प्रेमोद्गार-श्रीकृष्ण के प्रति

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राग कालिंगड़ा - ताल कहरवा


तुम करते रहो रसिकवर! यह रस-पान निरन्तर।
फिर भरते रहो नित्य नव रस से मेरा अन्तर॥
मैं तुम्हें कराऊँ पान मधुरतम रस नित, नटवर!
तुम मुझे पिलाते रहो स्व-रस, रसमय! जीवनभर॥
रस-दान-पान में रहें सदा संलग्र परस्पर।
बस, काल अनन्त न हो विराम, रस-धाम! पलकभर॥
नित नयी-नयी लीला का हो निर्माण मनोहर।
हो कभी न किंचित्‌‌ तृप्ति, बढ़े नित प्यास अधिकतर॥
हम करते रहें प्रिया-प्रियतम शुचि रास रसाकर।
हो नित्य उच्छलित परम मधुर रस-सुधा-‌उदधि वर॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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