श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य पृ. 277

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य

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षष्ठम अध्याय

अब योगी के आहार आदि के नियम कहे जाते हैं–

नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नत: ।
न चातिस्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ॥16॥

न अत्यश्नत आत्मसम्मितम् अन्नपरिमाणम् अतीत्य अशन्तः अत्यश्नतो न योगः अस्ति, न च एकान्तम् अनश्नतो योगः अस्ति ‘यदु ह वा आत्मसम्मितसंपन्न तदवति तन्न हिनस्ति’ ‘यद्भूयो हिनस्ति तद्यत्कनीयो न तदवति’ (शतपथ) इति श्रुतेः।

तस्माद् योगी न आत्मसम्मिताद् अन्नाद् अधिकं न्यूनं वा अश्नीयात्।

अथ वा योगिनो योगशास्त्रे परिपठिताद् अन्नपरिमाणाद् अतिमात्रम् अश्नतो योगो न अस्ति।

अधिक खाने वाले का अर्थात् अपनी शक्ति का उल्लंघन करके शक्ति से अधिक भोजन करने वाले का योग सिद्ध नहीं होता और बिलकुल न खाने वाले का भी योग सिद्ध नहीं होता; क्योंकि यह श्रुति है कि ‘जो अपने शरीर की शक्ति के अनुसार अन्न खाया जाता है वह रक्षा करता है, वह कष्ट नहीं देता (बिगाड़ नहीं करता): जो उससे अधिक होता है वह कष्ट देता है और जो प्रमाण से कम होता है वह रक्षा नहीं करता।

इसलिए योगी को चाहिए कि अपने लिए जितना उपयुक्त हो उससे कम या ज्यादा अन्न न खाय।

अथवा यह अर्थ समझो कि योगी के लिए योगशास्त्र में बतलाया हुआ जो अन्न का परिमाण है उससे अधिक खाने वाले का योग सिद्ध नहीं होता।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. प्रथम अध्याय 16
2. द्वितीय अध्याय 26
3. तृतीय अध्याय 114
4. चतुर्थ अध्याय 162
5. पंचम अध्याय 216
6. षष्ठम अध्याय 254
7. सप्तम अध्याय 297
8. अष्टम अध्याय 318
9. नवम अध्याय 339
10. दशम अध्याय 364
11. एकादश अध्याय 387
12. द्वादश अध्याय 420
13. त्रयोदश अध्याय 437
14. चतुर्दश अध्याय 516
15. पंचदश अध्याय 536
16. षोडश अध्याय 557
17. सप्तदश अध्याय 574
18. अष्टादश अध्याय 591
अंतिम पृष्ठ 699

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