श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य पृ. 20

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य

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प्रथम अध्याय

अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान कपिध्वजः।
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः।।20।।
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते।

अर्जुन उवाच-

सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत।।21।।
यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्।
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन्रणसमुद्यमे।।22।।

हे पृथ्वीनाथ! फिर उस शस्त्र चलने की तैयारी के समय युद्ध के लिए सजकर डटे हुए धृतराष्ट्र पुत्रों को देखकर कपिध्वज अर्जुन धनुष उठाकर श्रीकृष्ण से इस तरह कहने लगा कि हे अच्युत! जब तक मैं इन खड़े हरुए युद्धेच्छुक वीरों को भलीभाँति देखूँ कि इस रण-उद्योग में मुझे किन-किनके साथ युद्ध करना है तब तक आप मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा रखिए।।20-22।।

योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः।।23।।

(मेरी यह प्रबल इच्छा है कि) दुर्मति दुर्योधन का युद्ध में भला चालने व ले जो ये राजालोग यहाँ आये हैं, उन युद्ध करने वालों को मैं भली प्रकार देखूँ।।23।।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. प्रथम अध्याय 16
2. द्वितीय अध्याय 26
3. तृतीय अध्याय 114
4. चतुर्थ अध्याय 162
5. पंचम अध्याय 216
6. षष्ठम अध्याय 254
7. सप्तम अध्याय 297
8. अष्टम अध्याय 318
9. नवम अध्याय 339
10. दशम अध्याय 364
11. एकादश अध्याय 387
12. द्वादश अध्याय 420
13. त्रयोदश अध्याय 437
14. चतुर्दश अध्याय 516
15. पंचदश अध्याय 536
16. षोडश अध्याय 557
17. सप्तदश अध्याय 574
18. अष्टादश अध्याय 591
अंतिम पृष्ठ 699

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