श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य पृ. 156

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य

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तृतीय अध्याय

‘उत्पत्तिं प्रलयं चैव भूतानामागतिं गतिम्। वेत्ति विद्यामविद्यां च से वाच्यो भगवानिति।।’ [1]

उत्पत्त्यादिविषयं च विज्ञानं यस्य स वासुदेवो वाच्यो भगवान् इति।

तथा ‘उत्पत्ति और प्रलय को, भूतों के आने और जाने को एवं विद्या और अविद्या को जो जानता है, उसका नाम भगवान् है’ अतः उत्पत्ति आदि सब विषयों को जो भलीभाँति जानते हैं, वे वासुदेव ‘भगवान्’ नाम से वाच्य हैं।

काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः।
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम्।।37।।

काम एष सर्वलोकशत्रुः यन्निमित्ता सर्वानर्थप्राप्तिः प्राणिनाम्, स एष कामः प्रतिहतः केनचित् क्रोधत्वेन परिणमते। अतः क्रोधः अपि एष एव।

रजोगुणसमुद्भवो रजोगुणात् समुद्भवो यस्य स कामो रजोगुणसमुद्भवो रजोगुणस्य वा समुद्भवः। कामो हि उद्भूतो रजः प्रवर्तयन् पुरुषं प्रवर्तयति।

यह काम जो सब लोगों का शत्रु है, जिसके निमित्त से जीवों को सब अनर्थों की प्राप्ति होती है, वही यह काम किसी कारण से बाधित होने पर क्रोध के रूप में बदल जाता है, इसलिए क्रोध भी यही है।

यह काम रजोगुण से उत्पन्न हुआ है अथवा यों समझो कि रजोगुण का उत्पादक है; क्योंकि उत्पन्न हुआ काम ही रजोगुण को प्रकट करके पुरुष को कर्म में लगाया करता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (विष्णु पु. 6।5।78)

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श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. प्रथम अध्याय 16
2. द्वितीय अध्याय 26
3. तृतीय अध्याय 114
4. चतुर्थ अध्याय 162
5. पंचम अध्याय 216
6. षष्ठम अध्याय 254
7. सप्तम अध्याय 297
8. अष्टम अध्याय 318
9. नवम अध्याय 339
10. दशम अध्याय 364
11. एकादश अध्याय 387
12. द्वादश अध्याय 420
13. त्रयोदश अध्याय 437
14. चतुर्दश अध्याय 516
15. पंचदश अध्याय 536
16. षोडश अध्याय 557
17. सप्तदश अध्याय 574
18. अष्टादश अध्याय 591
अंतिम पृष्ठ 699

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