श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य पृ. 142

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य

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तृतीय अध्याय

यः तु साङ्ख्य आत्मज्ञाननिष्ठ आत्मरतिः आत्मनि एव रतिः न विषयेषु यस्य स आत्मरतिः एव रतिः न विषयेषु यस्य स आत्मरतिः एव स्याद् भवेद् आत्मतृप्तः च आत्मना एव तृप्तो न अन्नरसादिना मानवो मनुष्यः सन्न्यासी आत्मनि एव च संतुष्टः। सन्तोषो हि बाह्यार्थलाभे सर्वस्य भवति तम् अनपेक्ष्य आत्मनि एव च संतुष्टः सर्वतो वीततृष्ण इति एतत्। य ईदृश आत्मवित् तस्य कार्यं करणीयं न विद्यते न अस्ति इत्यर्थः।।17।।

परंतु जो आत्मज्ञाननिष्ठ सांख्ययोगी, केवल आत्मा में ही रतिवाला है अर्थात् जिसका आत्मा में ही प्रेम है, विषयों में नहीं और जो मनुष्य अर्थात् संन्यासी आत्मा से ही तृप्त है- जिसकी तृप्ति अन्न- रसादिन के अधीन नहीं रह गयी है तथा जो आत्मा में ही संतुष्ट है, बाह्य विषयों के लाभ से तो सबको संतोष होता ही है, पर उनकी अपेक्षा न करके जो आत्मा में ही संतुष्ट है अर्थात् सब ओर से तृष्णारहित है। जो कोई ऐसा आत्मज्ञानी है उसके लिए कुछ भी कर्तव्य नहीं है।।17।। क्योंकि-

नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन।
न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रयः।।18।।

न एव तस्य परमात्मरतेः कृतेन कर्मणा अर्थः प्रयोजनम् अस्ति।

अस्तु तर्हि अकृतेन अकरणेन प्रत्यवायाख्यः अनर्थः।

न अकृतेन इह लोके कश्चन कश्चिद् अपि प्रत्यवायप्राप्तिरूप आत्महानिलक्षणों वा न एव अस्ति। न च अस्य सर्वभूतेषु ब्रह्मादिस्थावरान्तेषु भूतेषु कश्चिद् अर्थव्यपाश्रयः।

उस परमात्मा में प्रीतिवाले पुरुष का इस लोक में कर्म करने से कोई प्रयोजन ही नहीं रहता है।

तो फिर कर्म न करने से उसको प्रत्यवायरूप अनर्थ की प्राप्ति होती होगी? (इस पर कहते हैं-)

उसके न करने से भी उस इस लोक में कोई प्रत्यवायप्राप्ति रूप या आत्महानिरूप अनर्थ की प्राप्ति नहीं होती तथा ब्रह्मा से लेकर स्थावर तक सब प्राणियों में उसका कुछ भी अर्थ व्यपाश्रय नहीं होता।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. प्रथम अध्याय 16
2. द्वितीय अध्याय 26
3. तृतीय अध्याय 114
4. चतुर्थ अध्याय 162
5. पंचम अध्याय 216
6. षष्ठम अध्याय 254
7. सप्तम अध्याय 297
8. अष्टम अध्याय 318
9. नवम अध्याय 339
10. दशम अध्याय 364
11. एकादश अध्याय 387
12. द्वादश अध्याय 420
13. त्रयोदश अध्याय 437
14. चतुर्दश अध्याय 516
15. पंचदश अध्याय 536
16. षोडश अध्याय 557
17. सप्तदश अध्याय 574
18. अष्टादश अध्याय 591
अंतिम पृष्ठ 699

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