श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य पृ. 14

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य

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तदर्थाविष्करणाय अनेकैः विवृतपदपदार्थ- वाक्यार्थन्यायम् अपि अत्यन्तविरुद्धानेकार्थ- त्वेन लौकिकैः गृह्यमाणम् उपलभ्य अहं विवेकतः अर्थनिर्धारणार्थ सङ्क्षेपतो विवरणं करिष्यामि।

तस्य अस्य गीताशास्त्रस्य सङ्क्षेपतः प्रयोजनं परं निःश्रेयसं सहेतुकस्य संसारस्य अत्यन्तोपरमलक्षणम्। तत् च सर्वकर्मसन्यास पूर्वकाद् आत्मज्ञाननिष्ठारूपाद् धर्माद् भवति। तथा इमम् एव गीतार्थधर्मम् उद्दिश्य भगवता

एव उक्तम् ‘स हि धर्मः सुपर्याप्तो ब्रह्मणः पदवेदने’ इति अनुगीतासु।

किं च अन्यदपि तत्रैव उक्तम्-

‘नैव धर्मी न चाधर्मी न चैव हि शुभाशुभी।

यः स्यादेकासने लीनस्तूष्णीं किञ्चिदचिन्तयन्।।’ ‘ज्ञानं सन्यासलक्षणम्’ इति च। अह अपि च अन्ते उक्तम् अर्जुनाय- ‘सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज’ इति।

अभ्युदयार्थः अपि यः प्रवृत्तिलक्षणो धर्मो वर्णाश्रमान् च उद्दिष्य विहितः स देवादिस्थानप्राप्तिहेतुः अपि सन् ईश्वरार्पणबुद्ध्या अनुष्ठीयमानः सत्वशुद्धये भवति फलाभिसन्धिवर्जितः।

शुद्धसत्त्वस्य च ज्ञाननिष्ठायोग्यताप्राप्तिद्वारेण ज्ञानोत्पत्तिहेतुत्वेन च निः श्रेयसहेतुत्वम् अपि प्रतिपद्यते।

यद्यपि उसका अर्थ प्रकट करने के लिए अनेक पुरुषों ने पदच्छेद, पदार्थ, वाक्यार्थ और आक्षेप, समाधानपूर्वक उसकी विस्तृत व्याख्याएं की हैं, तो भी लौकिक मनुष्यों द्वारा उस गीताशास्त्र का अनेक प्रकार से (परस्पर) अत्यंत विरुद्ध अनेक अर्थ ग्रहण किये जाते देखकर, उसका विवेकपूर्वक अर्थ निश्चित करने के लिए मैं संक्षेप से व्याख्या करूँगा।

संक्षेप में इस गीताशास्त्र का प्रयोजन परमकल्याण अर्थात् कारणसहित संसार की अत्यंत उपरतिरूप है, यह (परमकल्याण) सर्वकर्मसन्यासपूर्वक आत्मज्ञान निष्ठा रूप धर्म से प्राप्त होता है।

इसी गीतार्थरूप धर्म को लक्ष्य करके स्वयं भगवान् ने ही अनुगीता में कहा है कि ‘ब्रह्म के परमपद को (मोक्ष को) प्राप्त करने के लिए वह (गीतोक्त ज्ञाननिष्ठारूप) धर्म ही सुसमर्थ है।’


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. प्रथम अध्याय 16
2. द्वितीय अध्याय 26
3. तृतीय अध्याय 114
4. चतुर्थ अध्याय 162
5. पंचम अध्याय 216
6. षष्ठम अध्याय 254
7. सप्तम अध्याय 297
8. अष्टम अध्याय 318
9. नवम अध्याय 339
10. दशम अध्याय 364
11. एकादश अध्याय 387
12. द्वादश अध्याय 420
13. त्रयोदश अध्याय 437
14. चतुर्दश अध्याय 516
15. पंचदश अध्याय 536
16. षोडश अध्याय 557
17. सप्तदश अध्याय 574
18. अष्टादश अध्याय 591
अंतिम पृष्ठ 699

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