विषय सूची
श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल110 ( गोपी कह रही है- ) सखी ! यह सुन्दरता देख ! चञ्चल नेत्रोंके मध्यमे सुन्दर नाक है एकटक ( अपलक ) नेत्र ( वहाँ ) लगे रह जाते है । ( उसे देखकर ) व्रजयुवतियाँ परस्पर विचार कर और बुद्धि लगाकर यह उपमा देती है कि ’ मानो दो खञ्जनोके बीचमे तोता बैठा हो ’ तथा यह कहकर मनमे लज्जित हो जाती है ( कि उपमा ठीक नही बनी ) । कुछ-कुछ तिलके पुष्पकी कान्तिवाली ( नासिका ) पर मनरुपी भौंरा लुब्ध होकर रह जाता है । सूरदासजी कहते है- किंतु श्यामसुन्दरकी नासिका इतनी मनोहर है कि उसकी सुन्दरताको तिल-प्रसून कहाँ पा सके अर्थात नही पा सके है । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
-
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज