श्रीकृष्ण माधुरी पृ. 119

श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास

अनुवादक - सुदर्शन सिंह

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राग कान्हरौ

106
स्याम कमल पद नख की सोभा।
जे नख चंद इंद्र सिर परसे सिव बिरंचि अन लोभा ॥1॥
जे नख चंद सनक मुनि ध्यावत नहिं पावत भरमाही।
जे नख चंद प्रगट ब्रज जुबती निरखि निरखि हरषाही ॥2॥
जे नख चंद फनिंद हृदय तै एकौ निमिष न टारत।
जे नख चंद महामुनि नारद पलक न कहूँ बिसारत ॥3॥
जे नख चंद भजन खल नासत रमा हृदय जे परसति।
सूर स्याम नख चंद बिमल छबि गोपी जन मिलि दरसति ॥4॥

( सखी कहती है- ) श्यामके ( उन ) चरण-कमलोंके नखोंकी कैसी ( अवर्णनीय ) शोभा है जिन नखचन्द्रोंका इन्द्रने मस्तकसे स्पर्श किया तथा शंकर और ब्रह्माका मन भी जिनपर लुब्ध रहता है । जिन नखचन्द्रोंको सनकादि मुनि ध्यान करते हुए भी पाते नही- संदेहमे ही पडे रहते है ( कि ध्यानमे वे कभी आयेंगे भी या नही ) जिन नखचंद्रोको व्रजकी युवतियाँ प्रत्यक्ष देख-देखकर हर्षित होती है जिन नखचंद्रोको शेषजी अपने हृदयसे एक पलके लिये भी नही हटाते जिन नखचंद्रोंको महामुनि नारद ( हृदयसे ) एक क्षणके लिये भी नही भुलाते जिन नखचंद्रोका भजन दुष्टो ( कामादि दोषो ) को नष्ट कर देता है और जो लक्ष्मीजीके हृदयका स्पर्श करते ( लक्ष्मी जिन्हे हृदयपर धारण करती ) है सूरदासजी कहते है कि श्यामके उन्हीं नखचन्द्रोकी निर्मल शोभा ( सब ) गोपियाँ एकत्र होकर देखती है ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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