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श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग कान्हरौ106 ( सखी कहती है- ) श्यामके ( उन ) चरण-कमलोंके नखोंकी कैसी ( अवर्णनीय ) शोभा है जिन नखचन्द्रोंका इन्द्रने मस्तकसे स्पर्श किया तथा शंकर और ब्रह्माका मन भी जिनपर लुब्ध रहता है । जिन नखचन्द्रोंको सनकादि मुनि ध्यान करते हुए भी पाते नही- संदेहमे ही पडे रहते है ( कि ध्यानमे वे कभी आयेंगे भी या नही ) जिन नखचंद्रोको व्रजकी युवतियाँ प्रत्यक्ष देख-देखकर हर्षित होती है जिन नखचंद्रोको शेषजी अपने हृदयसे एक पलके लिये भी नही हटाते जिन नखचंद्रोंको महामुनि नारद ( हृदयसे ) एक क्षणके लिये भी नही भुलाते जिन नखचंद्रोका भजन दुष्टो ( कामादि दोषो ) को नष्ट कर देता है और जो लक्ष्मीजीके हृदयका स्पर्श करते ( लक्ष्मी जिन्हे हृदयपर धारण करती ) है सूरदासजी कहते है कि श्यामके उन्हीं नखचन्द्रोकी निर्मल शोभा ( सब ) गोपियाँ एकत्र होकर देखती है । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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