राधा कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्र पृ. 21

राधा कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्र

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श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र

इतीदमद्भुतस्तवं निशम्य भानुनन्दिनी,
करोतु संततं जनं कृपाकटाक्षभाजनम्।
भवेत्तदैव संचित-त्रिरूपकर्मनाशनं,
लभेत्तदाव्रजेन्द्रसूनु-मण्डलप्रवेशनम्।।

भावार्थ - हे वृषभानु नन्दिनी! मेरी इस विचित्र स्तुति को सुनकर सर्वदा के लिये मुझ दास को अपनी दया दृष्टि का अधिकारी बना लो। बस आपकी दया ही से तो मरेे (प्रारब्ध संचित और क्रीयामाण) इन तीनों प्रकार के कर्मों का नाश हो जायगा और उसी क्षण श्री कृष्ण चन्द्र के नित्य मण्डल (दिव्यधाम की लीलाओं में) सदा के लिये प्रवेश हो जायगा।

राकायां च सिताष्टम्यां दशम्यां च विशुद्धया।
एकादश्यां त्रयोदश्यां यः पठेत्साधकः सुधी।।
यं यं कामयते कामं तं तं प्राप्नोति साधकः।
राधाकृपाकटाक्षेण भक्तिः स्यात् प्रेमलक्षणा।।

भावार्थ - पूर्णिमा के दिन शुक्ल पक्ष की अष्टमी या दशमी को तथा दोनों की एकादशी और त्रयोदशी को जो शुद्ध बुद्धि वाला भक्त इस-स्तोत्र का पाठ करेगा वह जो भावना करेगा वही प्राप्त होग अन्यथा निष्काम भावना से पाठ करने पर श्री राधाजी की दया दृष्टि से पराभक्ति प्राप्त होगी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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