राधा कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्र पृ. 20

राधा कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्र

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श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र

अनन्तकोटिविष्णुलोक-नम्रपद्मजार्चिते,
हिमाद्रिजा पुलोमजा-विरंचिजावरप्रदे।
अपारसिद्धिवृद्धिदिग्ध-सत्पदांगुलीनखे,
कदाकरिष्यसीह मां कृपाकटाक्षभाजनम्।।

भावार्थ - अनन्त कोटि वैकुण्ठों की स्वमिनी श्री लक्ष्मी जी आपकी पूजा करती है तथा श्री पार्वती जी इन्द्राणी जी और सरस्वती जी ने भी आपकी पूजा कर वरदान पाया है। आपके चरण कमलों की एक उंगली के नख का भी ध्यान करने मात्र से अपार सिद्धियों का समूह बढ़ने लगता है। हे करुणामयी! आप कब मुझको वात्सल्य-रस भरी दृष्टि से देखोगी?

मखेश्वरी क्रियेश्वरी स्वधेश्वरी सुरेश्वरी,
त्रिवेदभारतीश्वरी प्रमाणशासनेश्वरी।
रमेश्वरी क्षमेश्वरीप्रमोदकाननेश्वरी,
ब्रजेश्वरी ब्रजाधिपे श्रीराधिके नमोस्तुते।।

भावार्थ - सब प्रकार के यज्ञों की आप स्वामिनी हैं सम्पूर्ण क्रियाओं की स्वामिनी, स्वधादेवी की स्वामिनी सब देवताओं की स्वामिनी (ऋक, यजु, साम) इन तीनों वेदों की वाणियों की स्वामिनी प्रमाण शासन शास्त्र की स्वामिनी, श्री रमा देवी की स्वामिनी, श्री क्षमा देवी की स्वामिनी और (अयोध्या के) प्रमोद वन की स्वामिनी अर्थात् (श्री सीताजी) आप ही हैं, हे राधिके! कब मुझे कृपाकर अपनी शरण में स्वीकार कर पराभक्ति प्रदान करोगी? हे ब्रजेश्वरी! हे ब्रज की अधिष्ठात्री श्री राधिके! आपको मेरा बारम्बार प्रणाम है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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