मोहन-मुख-पंकज पै सरबस दीन्हौ वार री॥
ननद कह्यौ मो तें अति नेह सों ’भाभी ! सुन,
एक बात मेरी तू मन तैं लै मान री।
निरखि लै मोहन कौ मोहन मुखारबिंद,
एक बार नैन भरि, तजि कै सब गुमान री’॥
गरब भरी हौं हठीली नहीं मानी बात,
कह्यौ दुत्कार-’ब्रजनारी ! भूली भान री॥
नंद के नैक-से छोरा पै तजि दीन्ही,
सारी मरजादा लोक-लाज, कुल-कान री’॥
ननद सुनि बात मेरी हँसि कै दीन्हीं टार री।
मोहन-मुख-पंकज पै सरबस दीन्हौ वार री॥
ननद कौ डाँटि मानौ गढ़ जीति आई हौं,
गरब में भरी जाय लागी गृह-काम री।
मन नाहिं मानै, मनाय हारी बार-बार,
पल-पल में याद आवै मोहन प्रिय स्याम री॥