प्रेम सुधा सागर पृ. 416

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(उत्तरार्ध)
इकसठवाँ अध्याय

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परीक्षित्! मैं कह चुका हूँ कि भगवान श्रीकृष्ण की प्रत्येक पत्नी के दस-दस पुत्र थे। उन रानियों में आठ पटरानियाँ थीं, जिनके विवाह का वर्णन मैं पहले कर चुका हूँ। अब उनके प्रद्दुम्न आदि पुत्रों का वर्णन करता हूँ। रुक्मिणी के गर्भ से दस पुत्र हुए—प्रद्युम्न, चारुदेष्ण, सुदेष्ण, पराक्रमी चारुदेह, सुचारु, चारुगुप्त, भद्रचारु, चारुचन्द्र, विचारू और दसवाँ चारु। ये अपने पिता भगवान श्रीकृष्ण से किसी बात में कम न थे। सत्यभामा के भी दस पुत्र थे—भानु, सुभानु, स्वर्भानु, प्रभानु, भानुमान्, चन्द्रभानु, बृहद्भानु, अतिभानु, श्रीभानु, और प्रतिभानु। जाम्बवती के भी भी साम्ब आदि दस पुत्र थे—साम्ब, सुमित्र, पुरुजित्, शतजित्, सहस्रजित्, विजय, चित्रकेतु, वसुमान्, द्रविड और क्रतु। ये सब श्रीकृष्ण को बहुत प्यारे थे। नाग्नजिती सत्या के भी दस पुत्र हुए—वीर, चन्द्र, अश्वसेन, चित्रुग, वेगभाग्, वृष, आम, शंकु, वसु और परम तेजस्वी कुन्ति। कालिन्दी के दस पुत्र ये थे—श्रुत, कवि, वृष, वीर, सुबाहु, भद्र, शान्ति, दर्श, पूर्णमास और सबसे छोड़ा सोमक।

मद्र देश की राजकुमारी लक्ष्मणा के गर्भ से प्रघोष, गात्रवान्, सिंह, बल, प्रबल, ऊर्ध्वग, महाशक्ति, सह, ओज और अपराजिता का जन्म हुआ। मित्रविन्दा के पुत्र थे—वृक, हर्ष, अनिल, गृध्र, वर्धन, अन्नाद, महाश, पावन, वह्नि, और क्षुधि। भद्रा के पुत्र थे—संग्रामजित्, ब्रहत्सेन, शूर, प्रहरण, अरिजित, जय, सुभद्र, वाम, आयु और सत्यक। इन पटरानियों के अतिरिक्त भगवान की रोहिणी आदि सोलह हजार एक सौ और भी पत्नियाँ थीं। उनके दीप्तिमान् और ताम्रतप्त आदि दस-दस पुत्र हुए। रुक्मिणीनन्दन प्रद्दुम्न का मायावती रति के अतिरिक्त भोजकट-नगर-निवासी रुक्मी की पुत्री रुक्मवतीसे भी विवाह हुआ था। उसी के गर्भ से परम बलशाली अनिरुद्ध का जन्म हुआ। परीक्षित्! श्रीकृष्ण के पुत्रों की माताएँ ही सोलह हजार से अधिक थीं। इसलिये उनके पुत्र-पौत्रों की संख्या करोड़ों तक पहुँच गयी ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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