प्रेम सुधा सागर पृ. 40

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(पूर्वार्ध)
सातवाँ अध्याय

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यशोदा जी ने समझा यह किसी ग्रह आदि का उत्पात है। उन्होंने अपने रोते हुए लाड़ले लाल को गोद में लेकर ब्राह्मणों से वेद मन्त्रों के द्वारा शान्ति-पाठ कराया और फिर वे उसे स्तन पिलाने लगीं। बलवान गोपों ने छकड़े को फिर से सीधा कर दिया। उस पर पहले की तरह सारी सामग्री रख दी गयी। ब्राह्मणों ने हवन किया और दही, अक्षत, कुश तथा जल के द्वारा भगवान और उस छकड़े की पूजा की। जो किसी के गुणों में दोष नहीं निकालते, झूठ नहीं बोलते, दम्भ, ईर्ष्या और हिंसा नहीं करते तथा अभिमान रहित हैं - उन सत्यशील ब्राह्मणों का आशीर्वाद कभी विफल नहीं होता। यह सोचकर नन्दबाबा ने बालक को गोद में उठा लिया और ब्राह्मणों से साम, ऋक और यजुर्वेद मन्त्रों द्वारा संस्कृत एवं पवित्र औषधियों से युक्त जल से अभिषेक कराया। उन्होंने बड़ी एकाग्रता से स्वस्तययनपाठ और हवन कराकर ब्राह्मणों को अति उत्तम अन्न का भोजन कराया। इसके बाद नन्दबाबा ने अपने पुत्र की उन्नति और अभिवृद्धि की कामना से ब्राह्मणों को सर्वगुण सम्पन्न बहुत-सी गौएँ दीं। वे गौएँ वस्त्र, पुष्पमाला और सोने के हारों से सजी हुई थीं। ब्राह्मणों ने उन्हें आशीर्वाद दिया। यह बात स्पष्ट है कि जो वेदवेत्ता और सदाचारी ब्राह्मण होते हैं, उनका आशीर्वाद कभी निष्फल नहीं होता।

एक दिन की बात है, सती यशोदा जी अपने प्यारे लल्ला को गोद में लेकर दुलार रहीं थीं। सहसा श्रीकृष्ण चट्टान के समान भारी बन गये। वे उनका भार न सह सकीं। उन्होंने भार से पीड़ित होकर श्रीकृष्ण को पृथ्वी पर बैठा दिया। इसके बाद उन्होंने भगवान पुरुषोत्तम का स्मरण किया और घर के काम में लग गईं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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