प्रेम सुधा सागर पृ. 243

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(पूर्वार्ध)
छत्तीसवाँ अध्याय

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उसने वसुदेव जी को मार डालने के तुरंत तीखी तलवार उठा ली, परन्तु नारद जी ने रोक दिया। जब कंस को यह मालूम हो गया कि वसुदेव के लड़के ही हमारी मृत्यु के कारण हैं, तब उसने देवकी और वसुदेव दोनों ही पति-पत्नी को हथकड़ी और बेड़ी से जकड़कर फिर जेल में डाल दिया। जब देवर्षि नारद चले गये, तब कंस ने केशी को बुलाया और कहा - ‘तुम व्रज में जाकर बलराम और कृष्ण को मार डालो।’ वह चला गया।

इसके बाद कंस ने मुष्टिक, चाणूर, शल, तोशल आदि पहलवानों, मन्त्रियों और महावतों को बुलाकर कहा - ‘वीरवर चाणूर और मुष्टिक! तुम लोग ध्यानपूर्वक मेरी बात सुनो। वसुदेव के दो पुत्र बलराम और कृष्ण नन्द के व्रज में रहते हैं। उन्हीं के हाथ से मेरी मृत्यु बतलायी जाती है। अतः जब वे यहाँ आवें, तब तुमलोग उन्हें कुश्ती लड़ने-लड़ाने के बहाने मार डालना। अब तुम लोग भाँति-भाँति के मंच बनाओ और उन्हें अखाड़े के चारों ओर गोल-गोल सजा दो। उन पर बैठकर नगरवासी और देश की दूसरी प्रजा इस स्वच्छंद दंगल को देखें।

महावत! तुम बड़े चतुर हो। देखो भाई! तुम दंगल के घेरे के फाटक पर ही अपने कुवलयापीड हाथी को रखना और जब मेरे शत्रु उधर से निकलें, तब उसी के द्वारा उन्हें मरवा डालना। इसी चतुर्दशी को विधिपूर्वक धनुष यज्ञ प्रारम्भ कर दो और उसकी सफलता के लिये वरदानी भूतनाथ भैरव को बहुत-से पवित्र पशुओं की बलि चढाओ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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