प्रेम सुधा सागर पृ. 166

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(पूर्वार्ध)
त्रयोविंश अध्याय

Prev.png
यज्ञपत्नियों पर कृपा

ग्वालबालों ने कहा- नयनाभिराम बलराम! तुम बड़े पराक्रमी हो। हमारे चितचोर श्यामसुन्दर! तुमने बड़े-बड़े दुष्टों का संहार किया है। उन्हीं दुष्टों के समान यह भूख भी हमें सता रही है। अतः तुम दोनों इसे भी बुझाने का कोई उपाय करो।

श्री शुकदेव जी ने कहा - परीक्षित! जब ग्वालबालों ने देवकीनन्दन भगवान श्रीकृष्ण से इस प्रकार प्रार्थना की तब उन्होंने मथुरा की अपनी भक्त ब्राह्मण पत्नियों पर अनुग्रह करने के लिये यह बात कही -

‘मेरे प्यारे मित्रों! यहाँ से थोड़ी ही दूर पर वेदवादी ब्राह्मण स्वर्ग की कामना से आंगिरस नाम का यज्ञ कर रहे हैं। तुम उनकी यज्ञशाला में जाओ ग्वालबालों मेरे भेजने से वहाँ जाकर तुम लोग मेरे बड़े भाई भगवान श्रीकृष्ण बलराम जी का और मेरा नाम लेकर कुछ थोडा-सा भात-भोजन की सामग्री माँग लाओ’ जब भगवान ने ऐसी आज्ञा दी, तब ग्वालबाल उन ब्राह्मणों की यज्ञशाला में गये और उनसे भगवान की आज्ञा के अनुसार ही अन्न माँगा।

पहले उन्होंने पृथ्वी पर गिरकर दण्डवत प्रणाम किया और फिर हाथ जोड़कर कहा - ‘पृथ्वी के मूर्तिमान देवता ब्राह्मणों! आपका कल्याण हो! आपसे निवेदन है कि हम व्रज के ग्वाले हैं। भगवान श्रीकृष्ण और बलराम की आज्ञा से हम आपके पास आये हैं। आप हमारी बात सुनें। भगवान बलराम और श्रीकृष्ण गौएँ चराते हुए यहाँ से थोड़े ही दूर पर आये हुए हैं। उन्हें इस समय भूख लगी है और वे चाहते हैं कि आप लोग उन्हें थोडा-सा भात दे दें।

ब्राह्मणों! आप धर्म का मर्म जानते हैं। यदि आपकी श्रद्धा हो, तो उन भोजनार्थियों के लिये कुछ भात दे दीजिये। सज्जनों! जिस यज्ञदीक्षा में पशुबलि होती है, उसमें और सौत्रामणी यज्ञ में दीक्षित पुरुष का अन्न नहीं खाना चाहिये। इनके अतिरिक्त और किसी भी समय किसी भी यज्ञ में दीक्षित पुरुष का भी अन्न खाने में में कोई दोष नहीं है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः