विषय सूची
श्रीप्रेम सुधा सागर
दशम स्कन्ध
(पूर्वार्ध)
द्वाविंश अध्याय
दृष्टि भेद से श्रीकृष्ण की लीला भिन्न-भिन्न रूप में दीख पड़ती है। अध्यात्मवादी श्रीकृष्ण को आत्मा के रूप में देखते हैं और गोपियों को वृत्तियों के रूप में। वृत्तियों का आवरण नष्ट हो जाना ही ‘चीरहरण-लीला’ है और उनका आत्मा में रम जाना ही ‘रास’ है। इस दृष्टि से भी समस्त लीलाओं की संगति बैठ जाती है। भक्तों की दृष्टि से गो लोकाधिपति पूर्णतम पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण का यह सब नित्य लीला-विलास है और अनादिकाल से अनन्तकाल तक यह नित्य चलता रहता है। कभी-कभी भक्तों पर कृपा करके वे अपने नित्य धाम और नित्य सखा-सहचारियों के साथ लीला-धाम में प्रकट होकर लीला करते हैं और भक्तों के स्मरण-चिन्तन तथा आनन्दमंगल की सामग्री प्रकट करके पुनः अन्तर्धान हो जाते हैं। साधकों के लिये किस प्रकार कृपा करके भगवान अन्तर्मल को और अनादि काल से सञ्चित संस्कार पट को विशुद्ध कर देते हैं, यह बात भी चीरहरण-लीला से प्रकट होती है। भगवान की लीला रहस्यमयी है, उसका तत्त्व केवल भगवान ही जानते हैं और उनकी कृपा से उनकी लीला में प्रविष्ट भाग्यवान भक्त कुछ-कुछ जानते हैं। यहाँ तो शास्त्रों और संतों की वाणी के आधार पर ही कुछ लिखने की धृष्टता की गयी है। हनुमानप्रसाद पोद्दार
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
-
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज