प्रेम अमिय चाहै पियौ -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

प्रेम तत्त्व एवं गोपी प्रेम का महत्त्व

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राग पीलू - ताल कहरवा


प्रेम के विघ्न


प्रेम अमिय चाहै पियौ, करै बिषय सौं नेह।
बिष यापै, जारै हियौ, करै जर्जरित देह॥29॥
मन बिषयन में रमि रह्यौ, करत प्रेम की बात।
सो मिथ्याबादी सदा जग में आवत जात॥30॥
भव-बारिधि तरिबौ चहै, गहै बिषय की नाव।
डूबै सो मँझधार ही, तनिक न लागै दाव॥31॥
प्रेम-पंथ पर पग धरै, करै जगत कौ सोच।
तिन कौ मन अति मलिन है, बुद्धि निपट ही पोच॥32॥
प्रेम-सिंधु कूदत डरै, करै जगत की याद।
सो डूबै भवसिंधु में, जीवन करि बरबाद॥33॥
दंभी, द्रोही, स्वारथी, बादी, मानी-पाँच।
ये खल नाहिन सहि सकैं प्रेम-‌अगिनि की आँच॥34॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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