विषय सूची 1 पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार 1.1 श्री कृष्ण के प्रेमोद्गार 2 टीका टिप्पणी और संदर्भ 3 संबंधित लेख पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार श्री कृष्ण के प्रेमोद्गार राग नट - तीन ताल निर्मल प्रेम नित्य यौं बोलै। अपने दोष विमल गुन पिय के लाख-लाख करि काढ़ै-तोलै॥ छक्यौ प्रेम-रस-सुधा निरंतर अग-जग भयौ बावरौ डोलै। दीखै हियौ प्रेम-रस छूँछौ पाय प्रेम-धन-रतन अमोलै॥ प्रेम-पियास बढ़त नित पावन-प्रेम अभाव दिखावत रोलै। धनि-धनि ऐसौ प्रेम-धनी जो नित नव प्रेम-गोलकहि खोलै॥ मोय परम सुख पहुँचावन-हित नित अति मधुर अमी-रस घोलै। तुम ऐसी, तातैं मैं रिनिया, सेवौं सकुचत हौले-हौले॥ टीका टिप्पणी और संदर्भ संबंधित लेख देखें • वार्ता • बदलेंपद रत्नाकर वंदना एवं प्रार्थना • श्रीराधा माधव स्वरूप माधुरी • बाल-माधुरी की झाँकियाँ • श्रीराधा माधव लीला माधुरी • श्रीकृष्ण के प्रेमोद्गार • श्रीराधा के प्रेमोद्गार-श्रीकृष्ण के प्रति • प्रेम तत्त्व एवं गोपी प्रेम का महत्त्व • श्रीराधा कृष्ण जन्म महोत्सव एवं जय गान • अभिलाषा वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः