गोपिका! हौं नित रिनी तिहारौ -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्री कृष्ण के प्रेमोद्गार

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राग मालकोश- तीन ताल


गोपिका! (प्रिया सब) हौं नित रिनी तिहारौ।
नव-नव बढ़त जात रिन छिन-छिन, नहिं घटिबे कौ बारौ॥
घटै तबहिं, जब तुम गोपिन हौं सुख बिसेष दे पाऊँ।
तुम्हरे सुख बिसेष कौ साधन हौं निज सुखहि बढ़ाऊँ॥
ज्यौं-ज्यौं बढ़ै तिहारे द्वारा मेरौ नव सुख प्रति छिन।
त्यौं-त्यौं बढ़तौ रहै तिहारौ रिन मो पै नित नूतन॥
या बिधि तुम्हरे रिन-सोधन कौ जो उपाय कछु करियै।
तौ उलटौ रिन बढ़ै, न साधन को‌उ, जासौं रिन भरियै॥
तन-मन-धन-जीवन अरपन करि मेरौ ही सुख साधौ।
धर्म-लोक-परलोक-स्वजन-कुल त्यागि मोहि आराधौ॥
या रिन तैं नहिं उरिन कबहुँ ह्वै सकौं, न होनौ चाहौं।
नित नव सेवा कौ अवसर लहि नित नव मनहि उमाहौं॥
कबहुँ सोधि पाऊँ न तिहारौ रिन अति मधुर मनोहर।
बँध्यौ रहौं तुव प्रेम-दाम सौं, भूलि सबहिं जोगैस्वर॥
खेलूँ सदा तिहारे सँग, हौं नित नव रास रचाऊँ।
तुम्हरे रस तैं परम सुखी बनि तुहरौ सुख सरसाऊँ॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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