नहीं करूँगा कभी किसी का अब तन-मन-धन से अपमान।
सबमें सदा देख प्रभु को, मैं सदा करूँगा शुचि समान॥
परुष-व्यंग्य-निन्दा वचनों का नहीं करूँगा मैं व्यवहार।
सदा करूँगा सब का सुधामयी हित-वाणी से सत्कार॥
सबमें प्रभु के मैं अनुपम गुण-गण ही देखूँगा सब ओर।
नमन करूँगा मैं सबके पद-कमलों में, हो भाव-विभोर॥
प्राणि-पदार्थ सभी देंगे फिर मुझको नित्य परम आनन्द।
क्योंकि सभी में दीख पड़ेंगे मुझे नित्य सत्-चित् आनन्द॥