गोपाल सहस्रनाम स्तोत्र पृ. 1

श्रीगोपाल सहस्रनाम स्तोत्रम्

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श्रीगोपालपूजनम्

कर्ता और उसकी धर्मपत्नी को आसन पर पूर्वाभिमुख बैठा कर आचार्य निम्न तीन नामों का उच्चारण करते हुए कर्ता से आचमन करावें— ॐ केशवाय नम: ॐ नारायणाय नम: ॐ माधवाय नम: ।

तदुपरान्त ॐ ऋषिकेशाय नम:, ॐ गोविन्दाय नम: । का उच्चारण करके कर्ता का हाथ जल से धुलावें ।

आचार्य निम्न मन्त्र का उच्चारण करके कर्ता को कुशा की पवित्री धारण करावें—

ॐ पवित्रे स्थे वैष्णव्यौ सवितुर्व: प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभि: ।। तस्य ते पवित्रपते पवित्र पूतस्य यत्काम: पुने तच्छकेयम् ।

आचार्य निम्न श्लोक का उच्चारण करके कर्ता के ऊपर और पूजन सामग्री की पवित्रता हेतु दुर्वा के द्वारा जल छिड़कें—

ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि: ।।

ॐ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु, औं पुण्डरीकाक्ष: पुनातु, औं पुण्डरीकाक्ष: पुनातु ।

इसके पश्चात् कर्ता प्राणायाम करे और निम्न मन्त्र का आचार्य उच्चारण करते हुए कर्ता से गोपालजी का ध्यान करावें— ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्यपार्ठ॰ सुरे स्वाहा ।।

आचार्य निम्न विनियोग व पौराणिक श्लोक का उच्चरण करते हुए कर्मा से आसन शुद्धि कर्म करावें—

ॐ पृथ्वीतिमन्त्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषि:, सुतलं छन्द:, कूर्मो देवता आसनपवित्र करणे विनियोग: ।

ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।
त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरु चासनम् ।।

आचार्य निम्न श्लोक का उच्चारण करके कर्ता से शिखा का बन्धन करावें—

ॐ ऊर्ध्वकेशि विरुपाक्षि मांसशेणितमोजने ।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये चामुण्डे चापराजिते ।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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