गीता रहस्य -तिलक पृ. 25

गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक

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पहला प्रकरण

उस में स्पष्ट रीति से यही सिद्धांत लिखा हुआ हैं कि तस्मात् गीता नाम ब्रह्माविदया-मूलं नीतिशास्त्रम् इ अर्थात्- इसलिये गीता वह नीति शास्त्र अथवा कर्तव्य धर्मशास्त्र अपने है जो कि ब्रह्मविद्या से सिद्ध होताहै[1]। यही बात जर्मन पंडित प्रो. डॉयसन ने अपने

उपनिषदों का तत्त्वज्ञान नामक ग्रंथ में कही हैं। इनके अतिरिक्त पश्चिमी और पूर्वी गीता-परीक्षक अनेक विद्वानों का भी यह मत हैं। तथापि इनमें से किसी ने समस्त गीता-ग्रंथ की परीक्षा करके यह स्पष्टतया दिखलाने का प्रयत्न नहीं किया हैं कि, कर्म प्रधानदृष्टि से उसके सब विषयो और अध्यायों का मेल कैसे हैं। बल्कि ड़ायसेन ने अपने ग्रंथ में कहा हैं,[2] कि यह प्रतिपादन कष्टसाध्य हैं इसलिये प्रस्तुत ग्रंथ का मुख्य उदेश्य यही हैं कि उक्तरीति से गीता की परीक्षा करके उसके विषयो का मेल अच्छी तरह प्रकट कर दिया जावे। परन्तु ऐसा करने के पहले, गीता के आरम्भ में परस्पर- विरुद्ध नीतिधर्मों के झगड़े मे पड़े हुए अर्जुन पर जो संकट आया था उसका असली रूप भी दिखलाना चाहिये; नही तो गीता में प्रति पादित विषयों का मर्म पाठकों के ध्यान में पूर्णतया नही जम सकेगा। इसलिये अब, यह जानने के लिये कि कर्म- अकर्म के झगड़े कैसे विकट होते हैं और अनेक बार इसे करूं कि उसे यह सूझ न पड़ने के कारण मनुष्‍य कैसा घबड़ा उठता हैं ऐसे ही प्रसंगों के अनेक उदाहरणों का विचार किया जायेगा जो हमारे शास्त्रों में- विशेषतः महाभारत में,- पाये जाते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीकृष्णानन्द स्वामीकृत चारों निबंध श्रीगीतारहस्य, गीतार्थ प्रकाश, गीतार्थ परामर्श और गीता सारोद्वार एकत्र करके राजकोट में प्रकाशित किया गये हैं।
  2. Prof. Deuseen's Philosophy of the Upanishads, p. 362, (English Translation, 1906.)

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गीता रहस्य अथवा कर्म योग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक
प्रकरण नाम पृष्ठ संख्या
पहला विषय प्रवेश 1
दूसरा कर्मजिज्ञासा 26
तीसरा कर्मयोगशास्त्र 46
चौथा आधिभौतिक सुखवाद 67
पाँचवाँ सुखदु:खविवेक 86
छठा आधिदैवतपक्ष और क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विचार 112
सातवाँ कापिल सांख्यशास्त्र अथवा क्षराक्षर-विचार 136
आठवाँ विश्व की रचना और संहार 155
नवाँ अध्यात्म 178
दसवाँ कर्मविपाक और आत्मस्वातंत्र्य 255
ग्यारहवाँ संन्यास और कर्मयोग 293
बारहवाँ सिद्धावस्था और व्यवहार 358
तेरहवाँ भक्तिमार्ग 397
चौदहवाँ गीताध्यायसंगति 436
पन्द्रहवाँ उपसंहार 468
परिशिष्ट गीता की बहिरंगपरीक्षा 509
- अंतिम पृष्ठ 854

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