गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक
नवां प्रकरण
ऋग्वेद में वर्णित इन्हीं मूल द्रव्यों का आगे अन्यान्य स्थानों में इस प्रकार उल्लेख किया गया है, जैसे:-
परायणम्’- आकाश ही सब का मूल है[4];
आसीदिंद तमोभूतमप्रज्ञातमलक्षणम् । अर्थात “यह सब पहले तम से यानी अन्धकार से व्याप्त था, भेदाभेद नहीं जाना जाता था, अगम्य और निद्रित सा था; फिर आगे इसमें अव्यक्त परमेश्वर ने प्रवेश करके पहले पानी उत्पन्न किया”[7]। सृष्टि के आरम्भ के मूल द्रव्य के सम्बन्ध में उक्त वर्णन या ऐसे ही भिन्न भिन्न वर्णन नासदीय सूक्त के समय भी अवश्य प्रचलित रहे होंगे; और उस समय भी यही प्रश्न उपस्थित हुआ होगा, कि इनमें कौन सा मूल-द्रव्य सत्य माना जावे? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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