कै रति रँग थकी थिर ह्वै -पद्माकर कै रति रँग थकी थिर ह्वै परजँक पै प्यारी परी सुख पाय कै । त्यो पदमाकर स्वेद के बुँद रहे मुकताहल से छवि छाय कै । बिदु रचे मेहदी के लसे कर तापर यो रह्यो आनन आय कै । इन्दु मनो अरविन्द पै राजत इन्द्र बधून को बॄन्द बिछाय कै। संबंधित लेख - वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः