कै रति रँग थकी थिर ह्वै -पद्माकर

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कै रति रँग थकी थिर ह्वै -पद्माकर


कै रति रँग थकी थिर ह्वै परजँक पै प्यारी परी सुख पाय कै ।
त्यो पदमाकर स्वेद के बुँद रहे मुकताहल से छवि छाय कै ।
बिदु रचे मेहदी के लसे कर तापर यो रह्यो आनन आय कै ।
इन्दु मनो अरविन्द पै राजत इन्द्र बधून को बॄन्द बिछाय कै।

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