चाह भरो चंचल हमारो चित्त नौल बधू ,
तेरी चाल चँचल चितौनि मे बसत है।
कहै पदमाकर सुचँचल चितौनिहु ते ,
औझकि उझकि झझकनि मे फसत है।
औझकि उझकि झझकनि ते सुरझि वेस ,
बाहीं की गहनि माँहि आइ बिलसत है ,
बाहीं की गहनि ते सुनाही की कहनि आयो ,
नाहीं की कहनि ते सुनाहीं निकसत है।