गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक
पहला प्रकरण
जिससे कहना पड़ता है कि यह गीता मुसलमानी राज्य के बाद की होगी। भागवत पुराण ही के समान देवी भागवत में भी, सातवे स्कंध के ३१ से ४० अध्याय तक, एक गीता है जिसे देवी से कही जाने के कारण, देवी गीता कहते है। खुद भगवद्गीता ही का सार अग्रिम पुराण के तीसरे खंड के ३८०वें अध्याय में, तथा गरुड़ पुराण के पूर्वखंड के २४२वें अध्याय में, दिया हुआ है। इसी तरह कहा जाता है कि वशिष्ठजी ने जो उपदेश रामचंद्रजी को दिया था उसी को योगवशिष्ठ कहते हैं। परन्तु इस ग्रंथ के अंतिम (अर्थात निर्वाण) प्रकरण में ‘अर्जुननोपाख्यान’ भी शामिल है जिसमें उस भगवद्गीता का सारांश दिया गया है कि जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था; इस उपाख्यान में भगवद्गीता के अनेक श्लोक ज्यों के त्यों पाये जाते हैं। [1] ऊपर कहा जा चुका है कि पूने में छपे हुए पद्म पुराण में शिव गीता नहीं मिलती; परन्तु उसके न मिलने पर भी इस प्रति के उत्तरखंड के १७१ से १८८ अध्याय तक भगवद्गीता के माहात्मय का वर्णन है और भगवद्गीता के प्रत्येक अध्याय के लिये माहात्मय-वर्णन में एक एक अध्याय है और उसके संबंध में कथा भी कही गई है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ योग. ६ पू.सर्ग. ५२-५८
- ↑ उपर्युक्त अनेक गीताओं तथा भगवद्गीता को श्रीयुत हरि रघुनाथ भागवत आज कल पूने से प्रकाशित कर रहे हैं।
संबंधित लेख
प्रकरण | नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज