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पहला प्रकरण
परन्तु सात सौ श्लोक की भगवद्गीता को ही गीता नहीं कहते। अनेक ज्ञान-विषयक ग्रंथ भी गीता कहलाते हैं उदाहरणार्थ महाभारत के शांतिपर्वांतर्गत मोक्ष पर्व के कुछ फुटकर प्रकरणों को पिंगल गीता, शंपाक गीता, मंकि गीता, बोध्यगीता, विचख्युगीता, हारीतगीता, वृत्रगीता, पराशर गीता और हंसगीता कहते हैं। अश्वमेध पर्व में अनुगीता के एक भाग का विशेष नाम ‘ब्राह्मणगीता’ है। इनके सिवा अवधूतगीता, अष्टावक्रगीता, ईश्वरगीता, उत्तरगीता, कपिलगीता, गणेशगीता, देवीगीता, पांडवगीता, ब्रह्मगीता, भिक्षुगीता, यमगीता, रामगीता, व्यासगीता, शिवगीता, सूतगीता, सूर्यगीता इत्यादि अनेक गीताएँ प्रसिद्ध हैं। इनमें से कुछ तो स्वतंत्र रीति से निर्माण की गई हैं और शेष भिन्न भिन्न पुराणों से ली गई हैं। जैसे- गणेश पुराण के अन्तिम क्रीडाखंड के १३८ से १४८ अध्यायों में गणेश गीता कही गई है।
इसे यदि थोड़े फेरफार के साथ भगवद्गीता की नकल कहें तो कोई हानि नहीं। कर्म पुराण के उत्तर भाग के पहले ग्यारह अध्यायों में ईश्वरगीता है। इसके बाद व्यासगीता का आरंभ हुआ है। स्कंद पुराणान्तर्गत सूत संहिता के चौथे अर्थात यज्ञ वैभव खंड के उपरिभाग के आरंभ [1] में ब्रह्मगीता है और इसके बाद आठ अध्यायों में सूत गीता है। यह तो हुई एक ब्रह्मगीता; दूसरी एक और भी ब्रह्मगीता है, जो योग वाशिष्ट के निर्वाण प्रकरण के उत्तरार्ध [2] में आ गई है। यम गीता तीन प्रकार की है। पहली- विष्णु पुराण के तीसरे अंश के सातवें अध्याय में; दूसरी- अग्रिम पुराण के तीसरे खंड के ३८१वें अध्याय में; और तीसरी- नृसिंह पुराण के आठवें अध्याय में है। यही हाल रामगीता के उत्तरकांड के पांचवें सर्ग में है और यह अध्यात्म रामायण ब्रह्माण्ड पुराण का एक भाग माना जाता है। परन्तु इसके सिवा एक दूसरी राम गीता गुरुज्ञान वासिष्ठ- तत्त्वसारायण’' नामक ग्रंथ में है जो मद्रास की ओर प्रसिद्ध है। यह ग्रंथ वेदान्त विषय पर लिखा गया है।
इसमें ज्ञान,उपासना और कर्म संबंधी तीन कांड है। इसके उपासना कांड के द्वितीय पाद के पहले अठारह अध्याय में रामगीता है और कर्मकांड के तृतीय पाद के पहले पांच अध्यायों में सूर्यगीता है। कहते हैं कि शिवगीता पद्मपुराण के पातालखंड में हैं। इस पुराण की जो प्रति पूने के आनंदाश्रम में छपी है उसमें शिवगीता नहीं है। पंडित ज्वाला प्रसाद ने अपने ‘अष्टादशपुराण दर्शन’ ग्रंथ में लिखा है कि शिवगीता गौडीय पद्मत्तर पुराण में है। नारद पुराण में, अन्य पुराणों के साथ साथ, पद्मपुराण की भी जो विषयानुक्रमणिका दी गई है। उसमें शिवगीता का उल्लेख पाया जाता है। श्रीमद्भागवत पुराण के ग्यारहवें स्कंध के तेरहवें अध्याय में हंस गीता और तेईसवें अध्याय में भिक्षुगीता कही गई है। तीसरे स्कंध के कपिलोपाख्यान [3] को कई लोग ’कपिलगीता’ कहते है। परन्तु ’कपिलगीता’ नामक एक छपी हुई स्वतंत्र पुस्तक हमारे देखने में आई है, जिसमें हठयोग का प्रधानता से वर्णन किया गया है और लिखा है कि यह कपिलगीता पद्य वर्णन किया गया है और लिखा है कि यह कपिलगीता पद्मपुराण से ली गई है। परन्तु यह गीता पद्मपुराण में है ही नहीं। इसमें एक स्थान[4] पर जैन, जंगम और सूफी का भी उल्लेख किया गया है।
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