श्रीकृष्ण माधुरी पृ. 138

श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास

अनुवादक - सुदर्शन सिंह

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राग सारंग

125
देखि सखी ! सुंदर घनस्याम।
सुंदर मुकुट कुटिल कच सुंदर
सुंदर भाल तिलक छबि धाम ॥1॥
सुंदर भ्रुव सुंदर अति लोचन
सुंदर अवलोकनि विश्राम।
अति सुंदर कुंडल श्रवनन बर
सुंदर झलकन रीझत काम ॥2॥
सुंदर हास नासिका सुंदर
सुंदर मुरली अधर उपाम।
सुंदर दसन चिबुक अति सुंदर
सुंदर हृदै बिराजति दाम ॥3॥
सुंदर भुजा पीतपट सुंदर
सुंदर कनक मेखला झाम।
सुंदर जंघ जानु पद सुंदर
सूर उधारन सुंदर नाम ॥4॥

( गोपिका कह रही है- ) सखी ! सुन्दर घनश्याम को देख ! सुन्दर मुकुट है सुन्दर घुँघराले केश है और सुन्दर ललाटपर ( लगा ) तिलक शोभाका धाम ( घर ) है । सुन्दर भौंहे है अत्यन्त सुन्दर नेत्र है तथा सुन्दर देखने की भंगी ( बडी ) शान्तिदायिनी ही है । श्रेष्ठ कानोंमे अत्यन्त सुन्दर कुण्डल है जिनकी सुन्दर कान्ति पर कामदेव भी मोहित हो जाता है । सुन्दर हास्य सुन्दर नासिका ओठों पर वंशी ( अति ) सुन्दरता उत्पन्न कर रही है । सुन्दर दाँत है अत्यन्त सुन्दर ठुड्डी है और पीताम्बर है स्वर्ण-किंकिणी की झलक सुन्दर है सुन्दर जाँघे और पिंडलियाँ सुन्दर है । सूरदास के उद्धार करनेवाले का नाम ( भी ) सुन्दर है ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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