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श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग गूजरी113 ( गोपी कह रही है- ) अरी ! हरिके चञ्चल नेत्र देख जिनके एक संकेतकी भी तुलनाके योग्य खञ्जन मछली तथा मृगशावककी चपलता नही है । लाल कमल नील कमल सौ दलोंका कमल श्वेत कमल आदि जितनी भी जातियोंके कमल है वे रात्रिमें बन्द रहते है सबेरे ही खिलते है; किंतु वे हरिके ( नेत्र-कमल तो ) रात-दिन खिले रहते है । प्रत्येक बार पलक उठाते समय ( आपके नेत्रोंमे ) जो अरुणसित-सेत[1] झलक दिखायी देती है उसे उपमा देकर वर्णन कौन करे । ऐसा लगता है मानो सरस्वती गंगा और यमुनाने ( यहाँ ) एकत्र होकर निवास बना लिया हो । देखनेकी भंगी अत्यंत तीव्र जलधारा है वहाँ मन स्थिर नही रह पाता । सूरदासजी कहते है कि श्यामसुन्दरके नेत्रोंकी शोभा अपार है उन्हे जो भी उपमा दी जाय वह अपनी चर्चा सुनकर स्वयं लजा जाती है ( कि कहाँ यह और कहाँ मैं ) । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 'सित' शब्द का अर्थ श्वेत होता है ; किंतु यहाँ यह 'शिति' का अपभ्रंश है ,अत: इसका अर्थ काला या नीला होगा । प्रसंग के अनुसार 'सित' शब्द 'श्वेत' के साथ पुनरूक्तिवदाभास अलंकार उपस्थित करता है ।
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