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श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग आसावरी107 ( गोपी कह रही है- ) सखी ! श्यामसुन्दरके वक्षःस्थलपर मोतियोंकी माला बडी ही अनुपम छटा दे रही है । मानो नवीन मेघपर बगुलोंकी पंक्ति हो यही उपमा कुछ फबती है । पीले हरे श्वेत लाल पुष्पोंकी वनमाला विशाल वक्षःस्थलपर ( ऐसी ) शोभित है मानो इसी समय आकाशमण्डलमे इन्द्रधनुष प्रकट हुआ हो । वक्षःस्थलपर ( पाचो अँगुलियोंसे युक्त ) भृगुका चरण-चिन्ह और पास ही कौस्तुभमणि दीख रहे है मानो छः चन्द्रमा मिलकर अर्धरात्रिमें एक साथ बैठे प्रसन्न हो रहे ( चकम रहे ) हों । श्यामसुन्दरकी विशाल ( लंबी ) भुजाओंपर चन्दनका लेप लगा है । सूरदासजी कहते है कि अपने अंग-प्रत्यंगकी शोभासे व्रजकी स्त्रियोंको ( उन्होंने ) ललचा दिया-मुग्ध कर लिया है । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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