श्रीकृष्ण माधुरी पृ. 102

श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास

अनुवादक - सुदर्शन सिंह

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राग बिहागरौ

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जैसे कहे स्याम है तैसे।
कृष्न रुप अवलोकन कौं सखि नैन होहिं जौ ऐसे ॥1॥
तैं जु कहति लोचन भरि आए स्याम कियौ तहँ ठौर।
पुन्न थली तिहि जानि बिराजे बात नही कछु और ॥2॥
तेरे नैन बास हरि कीन्हौ राधा आधा जानि।
सूर स्याम नटवर बपु काछे निकसे इहिं मग आनि ॥3॥

( एक गोपी श्रीराधासे कहती है- ) ’ तुमने श्यामसुन्दरको जैसा ( मोहन ) बतलाया वे सचमुच ही वैसे है । सखी ! श्रीकृष्णचन्द्रके स्वरुपको देखनेके लिये यदि नेत्र हों ( तो ) ऐसे ( तुम्हारे समान ) हों । तुम जो यह कहती हो कि नेत्र भर आये सो वहाँ तो श्यामने स्थान बना लिया; ( वे तुम्हारे नेत्रोंको ) पवित्र स्थान समझकर ( वहाँ ) विराजमान हुए है ! दूसरी कोई बात नही । श्रीराधे ! ( तुम्हे ) आधी ( अर्धांग अपूर्ण ) समझकर ( पूर्ण करनेके लिये ) हरिने तुम्हारे नेत्रोमें निवास किया है । ’ सूरदासजी कहते हैं कि नटवरका-सा वेष बनाए श्यामसुन्दरको उसी समय देखा जब वे इस मार्गसे निकले ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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