श्रीकृष्ण माधुरी पृ. 101

श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास

अनुवादक - सुदर्शन सिंह

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राग धनाश्री

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ऐसे हम देखे नँद नंदन ।
स्याम सुभग तनु पीत बसन जनु
नील जलद पै तडित सुछंदन ॥1॥
मंद मंद मुरली रव गरजनि
सुधा दृष्टि बरषति आनंदन।
बिबिध सुमन बनमाला उर मनु
सुरपति धनुष नए हो छंदन ॥2॥
मुक्तावली मनौ बग पंगति
सुभग अंग चरचित छबि चंदन।
सूरदास प्रभु नीप तरोवर
तर ठाढे सुर नर मुनि बंदन ॥3॥

( सखी सखीसे कहती है- ) हमने नन्दनन्दनको इस वेषमे देखा-मनोहर श्याम शरीरपर पीला वस्त्र ( ऐसा लग रहा था ) मानो नीले मेघपर स्वच्छन्द बिजली स्थिर हो । मन्द-मन्द वंशी-ध्वनिकी गर्जना ( के साथ ) अमृतमयी दृष्टि आनन्दकी वर्षा कर रही है । भाँति-भौतिके पुष्पोंकी वनमाला वक्षःस्थलपर ( ऐसी ) है मानो नयी रस्सीसे बँधा इन्द्रधनुष है । मोतियोंकी माला क्या है मानो बगुलोंकी पंक्ति हो मनोहर अंगोमे लगा चन्दन शोभा दे रहा है । सूरदासजी कहते है-देवता मनुष्य तथा मुनिगणोंके भी वन्दनीय मेरे स्वामी कदम्ब-वृक्षके नीचे खडे है ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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