श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
प्रथम अध्यायअथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान कपिध्वजः। अर्जुन उवाच- सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत।।21।। हे पृथ्वीनाथ! फिर उस शस्त्र चलने की तैयारी के समय युद्ध के लिए सजकर डटे हुए धृतराष्ट्र पुत्रों को देखकर कपिध्वज अर्जुन धनुष उठाकर श्रीकृष्ण से इस तरह कहने लगा कि हे अच्युत! जब तक मैं इन खड़े हरुए युद्धेच्छुक वीरों को भलीभाँति देखूँ कि इस रण-उद्योग में मुझे किन-किनके साथ युद्ध करना है तब तक आप मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा रखिए।।20-22।। योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः। (मेरी यह प्रबल इच्छा है कि) दुर्मति दुर्योधन का युद्ध में भला चालने व ले जो ये राजालोग यहाँ आये हैं, उन युद्ध करने वालों को मैं भली प्रकार देखूँ।।23।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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