सोचा करता तब मैं -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्री कृष्ण के प्रेमोद्गार

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राग भीमपलासी - ताल कहरवा


सोचा करता तब मैं, हे प्राणेश्वरि! तुम कर सोच-विचार।
त्याग क्यों नहीं कर देती हो क्यों सहती यों अत्याचार?
कर जाता प्रवेश तब शुचितम उर-मन्दिरमें मैं तत्काल।
देख वहाँ का दृश्य दुःख सब मिटते, होता तुरत निहाल॥
सुन्दर विकसित सुमनावलि सुरभित से सज्जित नवल निकुञ्ज।
रस-साधन समस्त आपूरित मधुर मनोहर सुषमा-पुज॥
बाह्य रोष को देखा मैंने वहाँ मधुर-रस प्रेमाधार।
दोष-कल्पना-शून्य नित्य निरवधि गुण-दर्शन सहज अपार॥
बिछी कुसुम-कोमल सुख-शय्या, प्रिये कर रही आलिङगन।
परम सुखास्वादन-रत, अति व्यवधान-रहित सुस्मित तन-मन॥
नहीं लेशभर केश-कल्पना, नहीं कदापि वियोग-विछोह।
नहीं जगत की-भोगों की स्मृति, नहीं विषय-ममता-मद-मोह॥
इसी तरह बाह्यभ्यन्तरमें रहता सदा तुम्हारा संग।
करते शुभ संस्पर्श परस्पर सदा-सर्वदा ही सब अंग॥
कभी तुम्हारे सिवा किसी को यदि देता मन में कुछ स्थान।
विमल तुम्हारे रस का केवल अधिकाधिक करने को पान॥
सभी जानती हो तुम मेरे मन की छोटी-मोटी बात।
क्योंकि स्वामिनी बन तुम उसमें करती हो निवास दिन-रात॥
करो प्रशंसा-निन्दा या दुत्कारो, करो परम सत्कार।
नित नव-रस-‌आस्वादन, नित्य नवीन मधुर लीला-विस्तार॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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