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श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग आसावरी56 सब चतुर स्त्रियाँ ( रोमावलीके सम्बन्धमे ) विचार करके कहती हैं - ’ यह अनुपम वक्षःस्थलरुपी कलिन्द पर्वतसे गिरकर उदररुपी पृथ्वीपर प्रवाहित हो नीचे नाभिरुपी अथाह कुण्डमे ( गिरनेके लिये ) चली जा रही है । दोनो भुजदण्ड ( इसके ) किनारे है हृदय मनोहर घाट है वनमाला किनारेके वृक्ष और मोतियोंकी माला मानो दो भागोंमे बँटी रससे फूलों फेनोंकी लहर ( श्रेणी ) है । ’ सूरदासजी कहते है कि श्यामसुन्दरकी रोमावलीकी शोभा देखकर ( व्रजकी ) स्त्रियाँ विचार करती है वे बुद्धिद्वारा ( अनेक प्रकारकी ) कल्पना करती है पर उस शोभाका पार न पा प्रेममे विभोर हो जाती है । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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