श्रीकृष्ण माधुरी पृ. 66

श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास

अनुवादक - सुदर्शन सिंह

Prev.png

राग गौरी

55
हरि प्रति संग नागरि ! निरखी।
दृष्टि रोमावली पर रहि बनत नाही परखि ॥1॥
कोउ कहति यह काम सरनी कोउ कहति नहिं जोग।
कोउ कहति अलि बाल पंगति जुरी एक सँजोग ॥2॥
कोउ कहति अहि काम पठयौ डसै जिनि यह काहु।
स्याम रोमावली की छबि सूर नाहिं निबाहु ॥3॥

श्यामके अंग-प्रत्यंगको देख ( व्रजकी ) चतुर स्त्रियोंकी दृष्टि रोमावलीपर स्थिर हो गयी है उसका परीक्षण ( उपमाके साथ वर्णन ) करते है - यह कामदेवके चलनेका मार्ग है ’ तो दुसरी कहती है - ’ यह उपमा तो उचित नही । ’ कोई कहती है - ’ ( यह ) भौंरेके बच्चोकी पंक्ति एक-में-एक सटी एकत्र हो गयी है । ’ कोई कहती है - ’ कामदेवद्वारा भेजा गया यह सर्प है जो किसीको डस ( काट ) न ले । ’ सूरदासजी कहते है-श्यामसुन्दरकी रोमावलीकी शोभाका वर्णन करनेमे ( हमारा ) निर्वाह ( गति ) नही है ( उसका ठीक वर्णन हमसे नही हो सकता ) ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः