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श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग गौरी55 श्यामके अंग-प्रत्यंगको देख ( व्रजकी ) चतुर स्त्रियोंकी दृष्टि रोमावलीपर स्थिर हो गयी है उसका परीक्षण ( उपमाके साथ वर्णन ) करते है - यह कामदेवके चलनेका मार्ग है ’ तो दुसरी कहती है - ’ यह उपमा तो उचित नही । ’ कोई कहती है - ’ ( यह ) भौंरेके बच्चोकी पंक्ति एक-में-एक सटी एकत्र हो गयी है । ’ कोई कहती है - ’ कामदेवद्वारा भेजा गया यह सर्प है जो किसीको डस ( काट ) न ले । ’ सूरदासजी कहते है-श्यामसुन्दरकी रोमावलीकी शोभाका वर्णन करनेमे ( हमारा ) निर्वाह ( गति ) नही है ( उसका ठीक वर्णन हमसे नही हो सकता ) । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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