विषय सूची
श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग धनाश्री50 जो चरण-कमल महामुनियोंको भी दुर्लभ हैं स्वप्नमें भी जिन्हे वे नही पाते व्रज-युवतियाँ ( उन्हीं ) श्रीहरिके चरणोंको मनाती ( सामने देख रही ) है । शरीरको ( घुटने कमर तथा गर्दन- ) तीन स्थानोंसे टेढा करके दोनों पिंडलियोंको सटाकर एक चरणपर खडे तथा दूसरे चरणतलके अंकुश व्रज ध्वज तथा यवादि चिह्न प्रत्यक्ष दिखाते हुये ( व्रजकी ) युवतियोंका मन मोहित कर रहे हैं । सूरदासजी कहते है कि इस शोभाको वे एकटक देख रही है और मन-ही-मन विचार ( उत्प्रेक्ष ) करती हैं कि मानो अरुण कमलपर साक्षात सुषमा ( सौन्दर्यकी अधिष्ठात्री देवी ) ही क्रीडा कर रही हो । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
-
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज